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हाथ गुरु के हाथ में इस भरोसे कि गुरु के हाथ में परमात्मा का हाथ छिपा है। शिष्य का अर्थ है परमात्मा तो दिखायी नहीं पड़ता, गुरु दिखायी पड़ता है, उसी के झरोखे से परमात्मा की थोड़ी झलक आती है, समर्पण किया। फिर भी अहंकार लड़ाई लड़ता है, आखिरी दम तक लड़ता है। आखिरी दम तक चेष्टा करता है कि हारूं न । स्मरण रखना इसे। यह प्रार्थना तुम्हारे मन में गूंजती ही रहे ।
तुम गहो यदि बांह तो सब स्वर्ग बांहों में समाए तुम मिलो तो जिंदगी फिर आंख में काजल लगाए काबा जाओ, काशी जाओ गंगा में डुबकियां लगाओ दिल का देवालय गंदा तो फंदा सारा धरम-करम
और दिल तब तक गंदा रहता है जब तक अहंकार बसा रहता है। हार का अर्थ है, अहंकार का मिट जाना। हार का अर्थ है, तुम्हारा न हो जाना, शून्य हो जाना। उसमें ही तुम्हारी विजय है ।
पूछते हो, 'भीतर कोई अंकुर जन्म ले चुका है जो बीज के टूटने की प्रतीक्षा कर रहा है। -कब ह टूटेगा और धरती में मिलेगा ?”
प्रतीक्षा करो और धैर्य से प्रतीक्षा करो। जल्दी मत करना। जल्दी में अक्सर ऐसा हो जाता है कि आदमी कल्पना करने लगता है कि टूट गया बीज, वृक्ष लग गया, फूल भी खिलने लगे। कल्पना मत कर लेना । कल्पना कर ली कि चूक गये। आते-आते चूक गये। घर पहुंचते-पहुंचते चूक गये। कल्पना का जाल फैला लिया, तो फिर असली वृक्ष कभी पैदा न हो सकेगा। कल्पना मत कर लेना । और अधैर्य में आदमी कल्पना करने लगता है।
तुमने देखा? अगर तुम बहुत अधैर्य से किसी की प्रतीक्षा कर रहे हो और रास्ते पर सूखे पत्ते हवा में उड़ जाते, तुम दौड़कर बाहर आ जाते - शायद आ गया! तुम किसी की प्रतीक्षा कर रहे हो, हवा का झोंका द्वार पर दस्तक देता, तुम भागे आ जाते कि शायद आ गया! तुम हजार बार कल्पना को आरोपित कर लेते हो। नहीं, अधैर्य मत करना। बड़ी धैर्यपूर्ण प्रतीक्षा !
अब यह बड़े समझने की बात है, अधैर्य ही होता है प्रतीक्षा में छिपा । या तो प्रतीक्षा नहीं होती, तो अधैर्य नहीं होता। प्रतीक्षा होती है तो अधैर्य होता है, यह झंझट है। और होना ऐसा चाहिए कि प्रतीक्षा हो और अधैर्य न हो। प्रतीक्षा + धैर्य, यही प्रार्थना का अर्थ है । कहना, जब तुझे आना हो आना । जब तुझे आना हो, अनंत काल में आना हो तो आना; क्योंकि जो तू समय चुनेगा वही ठीक होगा।
कैसे चुनूं ? मैं कौन हूं? मैं कैसे जानूं कि कब ठीक क्षण आ गया ? कब ठीक मौसम आ गया ? कब ऋतु है खिलने की ? तू जब आये, तब आना। मैं कितना ही पुकारूं, बेमौसम मत आना। बिना ऋतु के मत आना। जब तुझे आना हो तभी आना । तेरी मर्जी ही सदा पूरी हो । और मैं प्रतीक्षा करूंगा। थकूंगा नहीं, हारूंगा नहीं, उदास न होऊंगा, आशा-रहित न होऊंगा, निराश न होऊंगा, हताश न होऊंगा, प्रतीक्षा करूंगा। आज जैसी प्रतीक्षा है, वैसी ही कल, वैसी ही परसों, वैसी जन्मों-जन्मों तक
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5