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________________ आंख में काजल लगाए तुम तो हो जब तक, तब तक छाले ही छाले हैं। प्रभु मिल जाये...। तुम चलो यदि साथ तो हर एक छाला मुस्कुराए तुम मिलो तो जिंदगी फिर आंख में काजल लगाए प्रभु के मिलन के साथ ही छाले भी फूल बन जाते हैं। शूल भी फूल बन जाते हैं। भूल भी फूल बन जाती है। और जब तक तुम हो, तुम्हारी अकड़ है, दंभ है, दर्प है, यह 'मैं' का जहर है, तब तक फूल भी फूल नहीं, कांटे ही हैं। तब तक भूलें तो भूलें हैं ही, जिनको तुम भूलें नहीं समझते वे भी भूलें हैं। इसे खयाल में रखना, क्योंकि मेरे हिसाब में एक ही भूल है और एक ही सुधार है। मैंने तुम्हारी जिंदगी के गणित को सीधा-साफ और सरल कर दिया है। तुम्हारे गुरुओं ने तुमसे कहा है अब तक कि हजारों भूलें हैं, सब ठीक करनी हैं। एक-एक भूल को ठीक करने बैठोगे, कभी ठीक न कर पाओगे। क्रोध को ठीक करो, तो मोह बचा है। मोह को ठीक करो, तो लोभ बचा है। लोभ को ठीक करो, तो काम बचा है। और जब तक काम को ठीक करने पहुंचे, वर्षों गुजर गये, तब तक क्रोध जो दबा दिया था वह उभर आया। ऐसे चक्कर में घूमते रहोगे। भूलें बहुत हैं, तो फिर आदमी के छुटकारे का कोई उपाय नहीं। आदमी की सामर्थ्य, सीमा है, भूलें अनंत हैं। नहीं, इस तरह काम न होगा। हमें कुछ गहरा विश्लेषण करना होगा। उस मूल भूल को पकड़ना होगा, जिसके आधार पर सारी भूलों का जाल फैलता है। जड़ को काटना होगा, पत्तों को नहीं। तुम पत्ते काटते रहो, तुम्हारे पत्ते काटने से वृक्ष नष्ट नहीं होता। तुम्हारे पत्ते काटने से तो हो सकता है वृक्ष और सघन हो जाये, क्योंकि वृक्ष के पत्ते काटो, कलम होती है। एक पत्ते की जगह तीन निकल आते हैं। ____ मैं तुमसे कहता हूं, जड़ काटो। और जड़ अहंकार है। काम, लोभ, मद, मोह, मत्सर, सब अहंकार की जड़ पर खड़े हैं। और मजा यह है कि जैसे जड़ें जमीन में छिपी होती हैं, ऐसा ही अहंकार जमीन में छिपा है, पत्ते सब बाहर हैं। भूलें दिखायी पड़ती हैं, अहंकार दिखायी नहीं पड़ता। जड़ें इसीलिए तो जमीन में छिपी रहती हैं ताकि दिखायी न पड़ें, कोई काट न दे। वृक्ष को काट डालो, कोई फिक्र नहीं, फिर अंकुर आ जायेंगे। जीवन ऐसे नष्ट नहीं होता है। इसीलिए तो वृक्ष होशियारी से अपनी जड़ों को जमीन में छिपाये बैठे हैं। तुमने बच्चों की कहानियां पढ़ीं, जिनमें यह बात आती है कि किसी राजा ने अपने प्राण तोते में रख दिये। फिर तुम राजा को कितना ही मारो, वह नहीं मरता। जब तक कि तोते की गर्दन न मरोड़ो। अब यह पता कैसे चले कि किसमें रख दिये हैं प्राण, तोते में रखे हैं, कि मैना में रखे हैं, कि कोयल में रखे हैं, कि कहां रखे हैं। तो तुम राजा को मारते रहो, मरता नहीं। क्योंकि उसके प्राण वहां हैं नहीं। ऐसे ही तुम्हारी सारी बीमारियों ने अपने प्राण अहंकार में रख दिये हैं। जब तक तुम अहंकार की गर्दन न मरोड़ दो, कुछ भी न मरेगा। तुम पूछते हो, भूलें? भूलें मैंने बहुत की। जब तक मैं था, भूलें ही भूलें थीं। तब मैंने एक भी 258 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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