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तीसरा प्रश्न : प्यारे भगवान, क्या आपने अपनी जिंदगी में कभी कोई गलती की है ?
जब तक मैं था, तब तक गलती ही गलती थी। जबसे मैं नहीं हूं, तबसे गलती का कोई उपाय न रहा। गलती एक ही है, 'मैं' का होना। फिर उस 'मैं' से हजार गलतियां पैदा होती हैं। जब तक मैं था, गलती ही गलती थी। ठीक हो कैसे सकता था ! जो सही दिखायी पड़ता था, वह भी सही नहीं था । वह भी आभास था । वह भी प्रतीति थी । वह भी मान लेना था, समझा लेना था । तब तो सब गलती ही गलती थी । जबसे मैं न रहा, तबसे गलती करनेवाला ही न रहा। करनेवाला ही न रहा, तो गलती कैसे होगी ? तबसे सब ठीक ही ठीक है। क्योंकि तबसे परमात्मा परमात्मा है।
तुम जब तक हो, तब तक गलती है। तुम मिटे कि गलती भी गई। और खयाल रखना, जब तक तुम हो, तब तक जो ठीक लगता है वह भी अंतिम निर्णय में गलत सिद्ध होता है । और यह भी खयाल रखना कि जब तुम न बचे, तब जो गलत भी मालूम पड़े वह भी अंतिम निर्णय में सही सिद्ध होता है। जो परमात्मा से होता है, वही ठीक। जो हम अपनी अकड़ में सोचते हैं हमने किया, वही गलत । बस हमारी अकड़ गलत है। और कुछ गलती नहीं। एक ही पाप है। फिर एक पाप के अनेक रूपांतरण हैं, अनेक रूप हैं। एक पाप – मेरा होना, 'मैं' का होना ।
दिल का देवालय साफ करो
लुट गये तन के रतन सब छुट गये मन के सपन सब तुम मिलो तो जिंदगी फिर आंख में काजल लगाए गांव भर रूठा हुआ है दुश्मनी पर है ज तैश में है रात हाथों का दिया करता बहाना हर नजर है अदावत हर अधर पर है बगावत सौंप दूं किस गोद को जा आंसुओं का यह खजाना पांव जर्जर, पथ अपरिचित है चला जाता न किंचित तुम चलो यदि साथ तो हर एक छाला मुस्कुराए तुम मिलो तो जिंदगी फिर
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