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षयद्वीपिनो वीक्ष्य चकिताः शरणार्थिनः। विशंति झटिति क्रोडं निरोधैकाग्यसिद्धये।।
'विषयरूपी बाघ को देखकर भयभीत हुआ मनुष्य शरण की खोज में शीघ्र ही चित्त-निरोध और एकाग्रता की सिद्धि के लिए पहाड़ की गुफा में प्रवेश करता है।' __ जीवन कठिन है। जीवन सरल नहीं है। बड़ी समस्यायें हैं; हल होती मालूम नहीं पड़ती। जल्दी ही आदमी थक जाता और हार जाता। और हारे को पलायन है। हारा हुआ भागने लगता है। समस्याएं भागने से भी हल नहीं होती। लेकिन भगोड़े को एक आश्वासन, एक सांत्वना मिलती है कि कम से कम समस्याओं से दूर हो गया। लेकिन जो व्यक्ति समस्याओं से दूर हो गया, यह व्यक्ति, समस्याओं के मध्य में जो विकास हो सकता था उससे भी वंचित हो जाता है। ___इस सत्य को खूब मनःपूर्वक समझ लेना। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के मन में भगोड़ापन छिपा बैठा है। भय छिपा है तो भगोड़ापन छिपा है। भय है तो भीतर हम कायर हैं। जहां देखते हैं कि जीत होना मुश्किल है वहीं से भागने का मन होने लगता है। भागने को हम खूब सुंदर बनाने की कोशिश करते हैं। भागने को हम संन्यास कहते हैं। भागने को हम बड़ा समादर देते हैं। भगोड़ों की हम पूजा करते हैं, उनके चरण छूते हैं। भगोड़ों को हम महात्मा कहते हैं। हमारे भीतर जो भगोड़ा बैठा है, यह सब उसी भगोड़े के लिए ऊपर साज-श्रृंगार बिठाना है। हमारे भीतर जो भय बैठा है, कायर बैठा है उस कायर के लिए आभूषण पहनाने हैं।
ये तरकीबें हैं हमारे मन की। लेकिन एक बात खयाल रखना, भगोड़ों ने कभी कुछ पाया नहीं। मिलेगा जो भी, वह मिलेगा चुनौतियों के स्वीकार से। जीवन में कठिनाइयां हैं जरूर, लेकिन कठिनाइयां सप्रयोजन हैं। समस्यायें हैं जरूर, जटिल जाल है समस्याओं का, लेकिन वहीं तो चुनौती है। उसी जाल को सुलझाने में तो तुम्हारी प्रज्ञा का जन्म होगा। भाग गये तो प्रज्ञा से वंचित रह जाओगे। ___ इसलिए तो तुम्हारे भगोड़े संन्यासी गुफाओं में भला बैठ जायें, लेकिन उनके जीवन में तुम प्रतिभा, मेधा, सृजनात्मकता, तेजस्विता नहीं पाओगे। उनको देखना हो तो तुम अभी कुंभ मेले जा सकते हो, वहां तुम्हें सब तरह के मूढ़ों की जमात मिल जायेगी। प्रकार-प्रकार के मूढ़ प्रकार-प्रकार की वेशभूषा