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________________ प्रभु बहुत पास है, जरा भी दूर नहीं। प्रेम में ही छिपा है। तुम प्रेम को उघाड़ लो और प्रभु को पा लोगे। और जिस दिन तुमने अपने भीतर प्रभु को पा लिया उस दिन तुम आंख खोलकर पाओगे कि सब जगह वही है। सब जगह, जगह-जगह वही है। कोई और दूसरा नहीं है। हर दर्पण तेरा दर्पण है हर चितवन तेरी चितवन है मैं किसी नयन का नीर बनूं तुझको ही अर्ध्य चढ़ाता हूं काले तन या गोरे तन की मैले मन या उजले मन की चांदी सोने या चंदन की औगुन गुन की या निर्गुन की पावन हो या कि अपावन हो भावन हो या कि अभावन हो पूरब की हो या पश्चिम की उत्तर की हो या दक्षिण की हर मूरत तेरी मूरत है. हर सूरत तेरी सूरत है मैं चाहे जिसकी मांग भरूं तेरा ही ब्याह रचाता हूं हर दर्पण तेरा दर्पण है हर चितवन तेरी चितवन है मैं किसी नयन का नीर बनूं तुझको ही अर्ध्य चढ़ाता हूं आज इतना ही। मन तो मौसम-सा चंचल 211
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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