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किस भांति बनाय लिखूं पतिया'
मिलने का एक ही मार्ग है और वह है, मिटना । कभी मनुष्य परमात्मा से मिलता नहीं। इसे ठीक से सुन लेना। कभी मनुष्य परमात्मा से मिलता नहीं । जब परमात्मा होता है तो मनुष्य नहीं होता, जब मनुष्य होता है तो परमात्मा नहीं होता। दोनों कभी आमने-सामने खड़े नहीं होते ।
कबीर ने कहा है, 'जब तक मैं था, तू नहीं, अब तू है, मैं नाहिं ।' यह भी खूब मजा हुआ, कबीर ने कहा, मैं खोजने निकला था तुझे, जब तक मैं था, तू न मिला। और अब तू मिला है तो मैं नहीं हूं। यह मिलन कैसा हुआ? यह मिलन तो हुआ ही नहीं । मिलन हुआ लेकिन दो का नहीं, एक का ही ।
'प्रेम गली अति सांकरी', कबीर ने कहा है, 'ता में दो न समाय ।' यह परमात्मा से जो मिलन है, यह ऐसा मिलन नहीं है जैसे कि तुम एक आदमी से मिल लिये, मित्र से मिल लिये। पत्नी पति से मिल गई, पति पत्नी से मिल गया, मां बेटे से मिल गई। ऐसा मिलन नहीं है परमात्मा । यह परमात्मा से मिलन ऐसा है जैसे नदी सागर से मिल गई। नदी मिटती तो मिलती।
'किस मारग होय के जाय मिलूं'
नहीं, तुम तो न मिल सकोगे। इसलिए मैंने तुमसे कहा कि अगर तुम भजन करते-करते खो जाते हो तो बस अर्थ मिल जायेगा वहीं । तुम फिक्र छोड़ो। अब कुछ और जानना जरूरी नहीं है। खो जाओ। इतने भी मत बचो। अर्थ जानने को भी मत बचो। बिलकुल खो जाओ। डुबकी लगा लो। -
एक दिन ऐसा होगा कि भजन करने के पहले तुम थे, भजन करने में खो गये, कई बार भजन होगा, फिर तुम वापिस लौटकर हो जाओगे । फिर-फिर खोओगे, फिर-फिर हो जाओगे । एक दिन ऐसा भी होगा, खोओगे, भजन तो समाप्त हो जायेगा, तुम खोये ही रहोगे। तुम लौट न सकोगे। बस, उस दिन मिलना हो जाता है। उस दिन लिख दी पाती । उस दिन पता मिल गया।
डूबते रहो । डूबने का अभ्यास करते रहो, डुबकी लगाते रहो। आज नहीं कल, कल नहीं परसों, किसी न किसी दिन वह सौभाग्य की घड़ी आ जायेगी, जब तुम डूबोगे एक बार और फिर उबरोगे नहीं । तुम जहां बिलकुल न बचोगे, वहीं तुम पाओगे, जो बच रहा है वही परमात्मा है।
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तन से तो सब भांति बिलग तुम लेकिन मन से दूर नहीं हो हाथ न परसे चरण सलोने पांव न जानी गैल तुम्हारी दृगन न देखी बांकी चितवन अधर न चूमी लट कजरारी चिकने खुदरे गोरे काले छलकन ओ बेछलकनवाले घट को तो तुम निपट निगुण पर पनिहारिन से दूर नहीं हो तन से तो सब भांति बिलग तुम लेकिन मन से दूर नहीं हो
अष्टावक्र: महागीता भाग-5