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वे पढ़ रहे हैं। आधी रात गये किताब पूरी हुई। फूंक मारकर मोमबत्ती बुझा दी। मोमबत्ती बुझाते ही चकित खड़े रह गये । द्वार से, खिड़की से, रंध्र-रंध्र से बजरे की, चांद की रोशनी भीतर आ गई। अपूर्व ! नाच उठे। फिर रोने लगे। क्योंकि तब याद आया कि सौंदर्य बाहर बरस रहा है। चांद द्वार पर खड़ा है । और मैं इस मोमबत्ती को जलाये, इसके गंदे-से प्रकाश में सौंदर्यशास्त्र पढ़ रहा हूं। सौंदर्य द्वार पर खड़ा है और मैं किताब में सौंदर्य खोज रहा हूं। और इस मोमबत्ती के धीमे-से प्रकाश ने चांद की रोशनी को भीतर आने से रोक दिया है।
तुमने कभी देखा ? छोटा-सा प्रकाश मोमबत्ती का, चांद भीतर नहीं आता। मोमबत्ती बुझ गई, भर गया चांद भीतर, सब तरफ से दौड़ आया । रवींद्रनाथ ने लिखा है, वह घड़ी मेरे जीवन में बड़ी शुभ घड़ी हो गई। उस दिन मैंने जाना, ऐसी ही अहंकार की मोमबत्ती है। जब तक जलती रहती है तब तक प्रभु का प्रकाश द्वार पर खड़ा रहता है, भीतर नहीं आ पाता । फूंक मारकर बुझा दो यह मोमबत्ती, दौड़ा चला आता प्रभु । निर्बल के बल राम ।
इसका मतलब यह नहीं है कि जब तुम निर्बल हो जाते हो तो तुम भिखारी हो जाते हो । निर्बल होते ही तुम सम्राट हो जाते हो । जीसस के वचन हैं : 'ब्लेसेंड आर द मीक, फॉर दे शैल इनहेरिट द अर्थ; फॉर देअर्स इज द किंगडम ऑफ गॉड।' धन्यभागी हैं निर्बल। उन्हीं का है सारा जगत और ही हैं प्रभु के राज्य के मालिक । सम्राट हो जाता है आदमी निर्बल होकर ।
तो मैं तुमसे फिर कहता हूं, भिखारी की तरह परमात्मा के द्वार पर मत जाना। भिखारी का मतलब है, अहंकारी की तरह परमात्मा के द्वार पर मत जाना। अहंकार भिखमंगा है। मांग ही मांग तो है अहंकार के पास; और क्या है ? धन दो, पद दो, प्रतिष्ठा दो, कुर्सी दो । अहंकार के पास और क्या है? दो, दो, दो ! मांगता ही चला जाता। और मिले, और मिले, और मिले। मांगता ही चला जाता। मंगना है, भिखमंगा है।
सम्राट कौन? जिसकी मांग चली गई, जो मांगता नहीं, वही सम्राट है । और मांगेगा कौन नहीं ? जिसको राम मिल जायें वही नहीं मांगेगा; बाकी तो मांगते ही रहेंगे। राम को पाकर फिर क्या मांगने को बचा? और राम मिलते केवल उसी को, जो निर्बल है । धन्यभागी हैं निर्बल । सम्राट हो जाते हैं वे। उनकी निर्बलता बल है— निर्बल के बल राम ।
लेकिन तुम जरूर विरोधाभास देख लिये होओगे। क्योंकि जब मैंने कहा, सम्राट की तरह जाओ तो तुम्हारे अहंकार ने कहा कि सुनो ! सुनते हो ? अकड़कर चलना है अब । कोई भिखमंगे की तरह नहीं जाना है। झंडा ऊंचा रहे हमारा ! अब अकड़कर जाना है। अब परमात्मा पर हमला बोलना है, कोई ऐसे भिखारी की तरह नहीं जाना। बैंड-बाजे लेकर जाना है। उसको भी बता देना है कि कोई आ रहा है।
तुम यह समझे होओगे, जब मैंने कहा कि सम्राट की तरह जाओ । सम्राट की तरह जाने का अर्थ है, कोई मांग लेकर मत जाओ। मांग छोड़कर जाओ। और मांग अगर सब छूट जाये तो अहंकार नहीं बचेगा। क्योंकि अहंकार मांग पर ही जीता है। अहंकार मंगना है, भिखारी है।
लेकिन तुम कुछ का कुछ समझ लेते हो यह मैं जानता हूं। तुम कुछ का कुछ समझने के लिए मजबूर हो। जैसे ही मैंने कहा, सम्राट की तरह जाओ, तुम्हारी रीढ़ सीधी हो गई होगी। तुम अकड़कर
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5