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वह बदनसीब शख्स जो मेरी जगह जीया
ऐसा दुर्भाग्य का क्षण न आये इसके लिए अभी से सजग हो जाओ। जो-जो झूठ है, काट दो । जो-जो तुमने नहीं जाना है, अपने अनुभव से नहीं जाना है, उसे उतार दो । बासे को, उधार को हटा दो। जो किसी और से आया है और तुम्हारे अनुभव से नहीं जन्मा है, उससे मोह छोड़ दो। तुम जैसे हो वैसे ही अपने को जानो; चाहे यह कितना ही कष्टकर हो। और चाहे कितने ही कांटे चुभें, लेकिन प्रामाणिक ईमानदारी से तुम जो हो वही अपने को स्वीकार कर लो। अज्ञानी हो अज्ञानी, क्रोधी हो क्रोधी, बेईमान हो बेईमान, झूठे हो झूठे, चोर हो चोर – जो हो उसे स्वीकार कर लो।
सत्य,
हो तो चोर, और अचौर्य का व्रत लिये हो । हो तो कामी, और ब्रह्मचर्य की बातें कर रहे हो । हो तो लोभी, और छोटा-मोटा दान करके अपने को धोखा दे रहे हो । लाख तो कमा लेते हो, दो-चार हजार दान कर देते हो और महादानी और दानवीर बन जाते हो। हो तो अज्ञानी लेकिन तोते की तरह किताबें रट ली हैं और सोचते हो, ज्ञानी हो गये। कभी झुके नहीं परमात्मा के चरणों में, झुकना आता ही नहीं। एक पुजारी रख लिया उधार, वह रोज आकर तुम्हारी तरफ से परमात्मा के चरणों में झुक जाता है।
किसको धोखा दे रहे हो ? यह धोखा महंगा पड़ेगा। एक दिन जब मौत द्वार पर खड़ी होगी तब तुम चौंककर पूछोगे, वह कौन था शख्स जो मेरी जगह जीया ? क्योंकि तुम तो कभी जीये नहीं।
मैं तुमसे कहता हूं, अगर तुम अपने सत्य की उदघोषणा कर दो- दुखद हो, कष्टपूर्ण हो, अपमानजनक हो, फिर भी घोषणा कर दो, बदलाहट शुरू हो जायेगी। जो चोर यह कहने की हिम्मत जुटा ले कि मैं चोर हूं, ज्यादा देर चोर न रह सकेगा। चोर रहने के लिए अचौर्य का व्रत लेना अनिवार्य रूप से जरूरी है। इसीलिए तो अणुव्रत लेते हैं। चोर हैं, छटे चोर हैं, अचौर्य का व्रत ले लेते हैं। झूठे हैं, मंदिर में कसम खा लेते हैं समाज के सामने कि सच बोलने की कसम लेता हूं। इससे झूठ बोलने
बड़ी सुविधा हो जाती है। क्योंकि जब लोग जान लेते हैं कि इस आदमी ने कसम खाई, सच बोलता है तो लोगं मानते हैं कि सच बोलता होगा। झूठे को इस बात की बड़ी जरूरत है कि लोग मानें कि मैं सच बोलता हूं। इसीलिए तो झूठ चलता है। झूठ सच के सहारे चलता है। झूठ के अपने पैर नहीं; सच के कंधों पर चढ़कर चलता है। अगर तुम्हें झूठ बोलना हो तो समाज में प्रचार करो कि तुम सच्चे हो। तो ही तो लोग धोखे में पड़ेंगे; नहीं तो धोखे में पड़ेगा कौन ?
मुल्ला नसरुद्दीन ने गांव के एक सीधे-सादे आदमी को धोखा दे दिया । मजिस्ट्रेट को भी बड़ी हैरानी हुई। मजिस्ट्रेट ने उससे कहा, नसरुद्दीन, तुम्हें और कोई नहीं मिला धोखा देने को ? यह बेचारा इस गांव का सबसे सीधा सरलचित्त आदमी, इसको तुम धोखा देने गये ? नसरुद्दीन ने कहा, हुजूर और किसको देता ? यही मेरी मान सकता था । और तो गांव में सब लफंगे हैं, वे तो मुझे धोखा दे यही है एक बेचारा, जिसको मैं धोखा दे सकता था। अब और किसको देता ? आप ही कहिये । बात तो ठीक है। बेईमान को खबर फैलानी पड़ती है कि मैं ईमानदार हूं; प्रचार करना पड़ता है कि मैं ईमानदार हूं। उसकी ईमानदारी की हवा जितनी फैलती है उतनी ही बेईमानी की सुविधा हो जाती है। तुम्हें पता चल जाये कि आदमी बेईमान है, फिर बेईमानी करनी बहुत मुश्किल हो जाती है; असंभव जाता है।
दृश्य से द्रष्टा में छलांग
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