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तुमने कहानियां सुनी होंगी, बच्चों की किताबों में लिखी हैं कि किसी आदमी ने एक भूत को प्रसन्न कर लिया। उस भूत ने कहा कि प्रसन्न तो हो गया तुम पर, अब तुम जो कहोगे करूंगा, लेकिन एक खराबी है मेरी कि मैं बिना काम के नहीं रह सकता। मुझे काम देते रहना। अगर एक क्षण भी काम नहीं हुआ तो मैं मुश्किल में पड़ जाता हूं। फिर मैं तुम्हारी गर्दन दबा दूंगा। मुझे तो काम चाहिए ही। वह आदमी बोला, अरे यहीं तो...इससे अच्छा क्या होगा? नौकर-चाकर रखते हैं, उल्टी झंझट है। उनके पीछे लगे रहो तो भी काम नहीं करते। तू तो बड़ा भला है, यही तो चाहिए।
. उस आदमी को पता नहीं था कि वह किस झंझट में पड़ रहा है। भूत को घर जाकर...उसके जिंदगी में कई काम थे जो हो नहीं रहे थे। उसने भूत से कहा, चल एक महल बना दे। सोचा कि चलो दो-चार साल तो निपटे। वह घड़ी भर बाहर गया, भीतर आया, उसने कहा महल बन गया। महल खड़ा था। भूत का काम था। ‘एक सुंदर स्त्री ले आ।' वह बाहर गया और ले आया। तब तो वह आदमी घबड़ाया। तिजोड़ी भर दे। उसने कहा, भर दी।
थोड़ी देर में, मिनट दो मिनट में सब काम चुक गये। तब वह आदमी अपनी गर्दन के लिए घबड़ाया कि मुश्किल हो गई। अब उसे कुछ सूझे नहीं कि क्या करना। वह बोला कि ठहर, मैं अभी आता हूं। वह आदमी भागा घर के बाहर।
एक फकीर गांव के बाहर था, उसके पास गया और कहा कि एक झंझट में पड़ गया हूं, एक भूत को जगा लिया। अब मेरी गर्दन मुश्किल में है। अब मुझे कुछ सूझता नहीं, क्योंकि जो-जो मैं सोचता था, वह क्षण में कर लाता है। अगर ऐसे ही रहा तो जीना मुश्किल है। . फकीर ने कहा, तू एक काम कर, यह नसैनी पड़ी है, ले जा। भूत से कहना, इस पर चढ़-उतर। उसने कहा, इससे क्या होगा? उसने कहा, इसमें होगा क्या? कुछ करने की जरूरत ही नहीं। जब तेरे पास कोई दूसरा काम हो, बता देना, नहीं तो कहना चढ़-उतर। वह आदमी बोला, बात तो ठीक है लेकिन आप कैसे समझे ? उसने कहा, यही तो मन की सारी प्रक्रिया है। यह मन के भूत को समझकर ही मैं समझ गया। फकीर ने कहा, मन के भूत को समझकर... ।
अब एक आदमी बैठा माला जप रहा है; वह क्या कर रहा है? सीढ़ी चढ़-उतर रहा है। एक आदमी राम-राम जप रहा है, वह सीढ़ी चढ़-उतर रहा है। ___ लगा दी सीढ़ी उसने जाकर। भूत से उसने कहा, तू चढ़-उतर। जब चढ़ जाये तो उतर, जब उतर जाये तो चढ़। तब से भूत चढ़-उतर रहा है, आदमी निश्चित है।
मन काम चाहता है। मन भूत है। जब भी मन खाली होता है तभी मुश्किल खड़ी हो जाती है; तत्क्षण मन कहता है, कुछ करो। छुट्टी के दिन भी छुट्टी कहां? तुमने देखा, छुट्टी के दिन और झंझट हो जाती है। रोज का काम होता नहीं, दफ्तर गये नहीं, दूकान गये नहीं, अब छुट्टी है, अब क्या करना? तो कोई अपनी कार खोलकर बैठ जाता है, उसी की सफाई करने लगता है। लगा ली नसैनी! कोई रेडिओ खोलकर बैठ जाता है, उसी को सुधारने लगता है। वह सुधरा ही हुआ था। कुछ न कुछ करो। या चले, पिकनिक को चले। सौ-पचास मील कार दौड़ाई, पहुंचे, भागे, फिर वापिस लौटे। ___ कहते हैं कि लोग छुट्टी के दिन इतने थक जाते हैं जितने काम के दिन नहीं थकते। खाली बैठ नहीं सकते। छुट्टी का मतलब है खाली बैठो, लेकिन खाली बैठना संभव कहां है? खाली बैठना तो
दृश्य से द्रष्टा में छलांग
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