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आप लिखकर ही दे दो। तो डरने लगे। कहा, नहीं आप भी क्या बात करते हैं। बात कह दी, लिखना क्या? मैंने कहा, तुम लिख ही दो। शायद पांच साल बाद तुम फिर बदल जाओ। लिखकर उन्होंने मुझे दिया। जब पांच साल फिर निकल गये तो मैंने उन्हें तार किया कि पांच साल पूरे हो गये। वे आये
और कहने लगे, क्षमा करें। यह मुझसे न हो सकेगा। और अब आपसे दुबारा पांच साल मांगू इसकी भी हिम्मत नहीं पड़ती। लेकिन यह मुझसे हो न सकेगा। __मैंने कहा, मरोगे या नहीं मरोगे? मरते वक्त क्या करोगे? मौत द्वार पर खड़ी हो जायेगी...मुझे तो तुम कहते हो कि नहीं हो सकेगा; मौत से क्या कहोगे? वे कहने लगे, कौन आज मरा जाता हूं। जब आयेगी मौत तब देख लेंगे।
ऐसे आदमी सरकाता चलता। ऐसे आदमी हटाता चलता। जीवन ऐसे रत्ती-रत्ती हाथ से रिक्त होता जाता। एक-एक बूंद टपकती है इस गागर से और गागर खाली होती जा रही है। और तुम कहते हो कल, और तुम कहते हो परसों। दृश्य के पीछे दौड़ते रहो, कभी कोई सुख संभव नहीं है।
जागते में जागता भागता हूं। अंधेरी गुफा में खोजता हुआ दरार चौड़ाने को झांकने को पार
जागने को . यह तुम जिसको जागरण कहते हो यह जागरण नहीं है।
जागते में जागता भागता हूं अंधेरी गुफा में खोजता हुआ दरार चौड़ाने को झांकने को पार
जागने को .. तुम अभी जागे कहां? अभी तो अंधेरी गुफा में दौड़ रहे। अभी तो तुम दरार ही खोज रहे हो कि कहीं से दरार मिल जाये, थोड़ी रोशनी मिल जाये, थोड़ा सुख मिल जाये। अभी तो तुम चेष्टा कर रहे हो कि थोड़ा कहीं से द्वार मिल जाये तो जाग जाऊं।।
यह तुम्हारा जागरण वास्तविक जागरण नहीं है। जागता तो वही है जो भीतर की तरफ चलता है। बाहर की तरफ चलनेवाला आदमी तो सोता ही चला जाता है। दरार मिलेगी नहीं, दरार होगी तो भी खो जायेगी। और यह अंधेरी गुफा और बड़ी हो जायेगी। ऐसे तो कभी सूरज मिला ही नहीं। बाहर चलकर तो आदमी अंधेरे और अंधेरे में चला गया है। बाहर अंधेरा है, भीतर रोशनी है। भीतर है ज्योतिपुंज। भीतर अहर्निश जल रहा है दीया। और तुम कहां भटक रहे?
जो देखा, सपना था
अनदेखा अपना था जो-जो तुमने देखा है, सब सपना है। दृश्यमात्र सपना है। यही तो पूरब की अपूर्व धारणा है माया की। माया का अर्थ है:
दृश्य से द्रष्टा में छलांग
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