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तक न लौटा तो सब गया। डूबते तक लौट आना चाहिए, यह शर्त थी । उसने सारा जीवन दांव पर लगा दिया। अब तो बहुत ही करीब रह गया है और सूरज बिलकुल क्षितिज छू रहा है। उसने सारी शक्ति आखिरी बार इकट्ठी की ; बची भी नहीं थी शक्ति, सब दांव पर लगा दी। भागा। लेकिन जो रेखा खींची गई थी उस पर पहुंचते-पहुंचते गिर पड़ा। सूरज ढल ही रहा था। पहुंच गया ठीक वक्त पर, लेकिन गिरते ही मर गया।
और गांव भर के लोग खूब हंसे। और उन्होंने उसकी कब्र बना दी और कब्र पर लिख दिया: एक आदमी को कितनी जमीन चाहिए। छह फीट ! छह फीट कब्र बनी । मीलों घेर ली थी, वह सब व्यर्थ चली गई।
यह टालस्टाय की बड़ी प्रसिद्ध कहानी है : 'हाऊ मच लैंड डज ए मैन रिक्वायर ।' कितनी जमीन ? छह फीट काफी हो जाती है । वासना बढ़ती चली जाती। वासना कोई छोर नहीं मानती। तुम दौड़ते ही चले जाते ।
मेरे एक मित्र हैं, मुझसे उन्होंने कहा कि आप कहते हैं कि आदमी को अंतिम समय में प्रभु में ध्यान लगा देना चाहिए। तो उनकी उम्र है कोई साठ साल । तो मैंने कहा, अब अंतिम समय तो आ ही गया। अब और क्या राह देख रहे ? उन्होंने कहा, बस ऐसा करें, पांच साल का मुझे और वक्त दें। मैंने कहा, तुम्हारी मर्जी । क्योंकि वक्त तुम्हारा, उम्र तुम्हारी, ध्यान तुम्हारा; मेरी तो कुछ इसमें जबर्दस्ती चल नहीं सकती। तुम्हारी मौज। लेकिन पांच साल का पक्का है कि बचोगे ? वे हंसने लगे। कहने लगे कि आप भी कैसी बात करते हैं । अरे आपके आशीर्वाद से बचेंगे। क्यों नहीं बचेंगे ! मैंने कहा, मेरे आशीर्वाद से तुम्हारा क्या लेना-देना ! न मेरे आशीर्वाद से तुम पैदा हुए, न मेरे आशीर्वाद से तुम जी रहे हो, न मेरे आशीर्वाद से बचोगे। इन धोखों में मत पड़ो।
वे जरा दुखी भी हो गये। कहने लगे, ऐसी बात तो नहीं कहनी चाहिए। आप तो कम से कम . आशीर्वाद दें। मैंने कहा कि मुझे आशीर्वाद देने में कुछ खर्च नहीं लगता। इसीलिए तो साधु-महात्मा आशीर्वाद देते हैं। कुछ हर्जा ही नहीं है। आशीर्वाद देने में मेरा क्या बिगड़ता है ? आशीर्वाद लो । लेकिन पांच साल में पक्का है, अगर बच गये तो फिर ? उन्होंने कहा, फिर तो संन्यास ले लेना है। सब बंद कर दूंगा। हो गया !
पांच साल भी पूरे हो गये। जब मैं दुबारा उनके घर मेहमान हुआ तो वे बड़े बेचैन थे। वे अकेले में मेरे पास न बैठें, इधर-उधर घूमें। मैंने कहा कि घूमने से क्या होगा ? पांच साल पूरे हो गये। कहा, आप कहते तो ठीक हैं। पांच साल का और वक्त दे दें। तो मैंने उन्हें टालस्टाय की यह कहानी सुनाई: 'हाऊ मच लैंड डज ए मैन रिक्वायर ।' तो तुम कहे थे पैंसठ साल, अब बदलते हो ? नहीं, वे कहने लगे बदलता नहीं हूं। अपनी बात पर रहूंगा लेकिन कई काम उलझे पड़े हैं, धंधे अधूरे पड़े हैं, बच्चे युनिवर्सिटी में हैं, आते हैं, उलझनें हैं, सब इनको निपटा लूं।
पांच साल में मैंने कहा, उलझनें निपट जायेंगी? क्योंकि उलझनें किसी की कभी नहीं निपटीं । पांच साल तो क्या, पचास साल और जीयो तो भी नहीं निपटेंगी। क्योंकि पांच साल में उलझनें निपटाओगे तो जरूर, लेकिन उलझनें खड़ी भी तो करोगे ।
उन्होंने कहा कि नहीं, इस बार बिलकुल पक्का कहता
कहो तो लिखकर दे दूं। मैंने कहा,
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अष्टावक्र: महागीता भाग-5