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भीतर आओ। दूसरे के साथ संबंध जोड़ने से तुम अपने से टूटते हो तो संबंध मत जोड़ो। रहो सबके बीच, अकेले रहो, बिना जुड़े रहो। रहो भीड़ में लेकिन एकांत खंडित न हो पाये। दूसरा मौजूद हो, दूसरा पास भी हो तो भी तुम्हारे स्व पर उसकी छाया न पड़ पाये, उसका रंग न पड़ पाये । तुम्हारा स्व मुक्त रहे।
मगर न मालूम कितने लोग, जिनका संतत्व से कोई संबंध नहीं है, संतों के नाम से चलते हैं। मूढ़ों की बड़ी भीड़ है । तो मूढ़ों के भी महात्मा होते हैं। होंगे ही। जिनकी इतनी बड़ी भीड़ है उनके महात्मा भी होंगे। उनके महात्मा भी उन जैसे होते हैं।
मैं सुना, एक बार एक महात्मा मस्त होकर भजन गाते हुए एक रास्ते से गुजर रहे थे। थोड़ी दूर चलकर उन्होंने देखा, तो देखा कि पीछे एक सांड़ उनके लगा चला आ रहा है। शायद उनकी मस्ती से प्रभावित हो गया, या उनके डोलने से । महात्मा घबड़ाये । मस्ती ऊपरी - ऊपरी थी, कोई दिल की तो बात न थी । वे तो ऐसे ही भक्तों की तलाश में मस्त हो रहे थे कि कोई मिल जाये। मिल गया सांड़ ! उन्होंने डर के मारे रफ्तार बढ़ा दी। थोड़ी दूर पहुंचने पर फिर पलटकर देखा - अब तो उनकी मस्ती वगैरह सब खो गई— सांड़ बड़ी तेजी से पीछे चला आ रहा है। अब तो उन्होंने भागना शुरू कर दिया। सांड़ भी पीछे भागने लगा। सांड़ भी खूब था, बड़ा भक्त! शायद महात्मा की तलाश में था, कि गुरु की खोज कर रहा था । खोजी था ।
अब तो महात्मा बहुत भयभीत हो गये और अपनी जान बचाने के उद्देश्य से एक ऊंचे चबूतरे पर 'चढ़ गये। सांड़ भी चढ़ गया। भक्त जब पीछे लग जायें तो ऐसे आसानी से नहीं छोड़ देते, आखिर तक पीछा करते हैं। घबड़ाकर महात्मा झाड़ पर चढ़ गये तो देखा, सांड़ नीचे खड़ा होकर फुफकार रहा है। अब वे महात्मा झाड़ से उतर न सकें। थोड़ी देर में तमाशा देखने के लिए खासी भीड़ इकट्ठी हो गई। बड़ा शोरगुल मचने लगा। कई व्यक्तियों ने प्रयास भी किया कि सांड़ को किसी तरह हटा दें, किंतु सांड़ वहां से टस से मस न हो ।
अंत में खोजबीन कर सांड़ के मालिक को बुलाया गया। उसने भी सांड़ को मनाने की बहुत कोशिश की, किंतु सांड़ अपनी जगह वैसा का वैसा खड़ा रहा। महात्मा अटके झाड़ पर, कंप रहे और सांड़ नीचे फुफकार रहा है। अब सांड़ का मालिक भी चिंता में पड़ गया कि मामला क्या है ? ऐसा तो कभी न हुआ था।
एकाएक उसकी बुद्धि के फाटक खुले और भीड़ को संबोधित करके वह कहने लगा, भाइयो ! असल बात यह है कि यह सांड़ बड़ा समझदार जानवर होता है। इसे इस बात का पता लग गया है कि इन महात्मा के दिमाग में भूसा भरा है, और जब तक यह इस भूसे को खा न लेगा, यहां से जायेगा नहीं ।
जिनको महात्मा कहते हो उनमें से अधिक के दिमाग में भूसा भरा है। और वह भूसा तुम्हारे जैसा है। तुम्हें जंचता भी बहुत है। तुम्हारी जो मान्यतायें हैं उनको जो भी स्वीकार कर ले और उनको सही कहे, उसको तुम कहते हो महात्मा ।
संत तो विद्रोही होते हैं। संत कुछ ऐसे लीक के अनुयायी नहीं होते; लकीर के फकीर नहीं होते । संत तो कुछ निश्चित ही मूलभूत बात कहते हैं। यह कोई मूलभूत बात है ?
अपनी बानी प्रेम की बानी
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