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________________ पांचवां प्रश्नः शास्त्रों और संतों का कहना है कि परस्त्रीगमन करने से साधक का पतन होता है और साधना में उसकी गति नहीं होती। इस मूलभूत विषय पर प्रकाश डालने की अनुकंपा करें। प | छा है फिर दौलतराम खोजी ने। वे बड़ी गहरी बात खोजकर लाते हैं! खोजी हैं! इसको मूलभूत विषय बता रहे हैं! अब इससे ज्यादा कूड़ा-करकट का और कोई विषय नहीं। जिस शास्त्र में लिखा हो वह भी किसी बड़े ज्ञानी ने न लिखा होगा, किसी टुटपुंजे ने लिखा होगा। ज्ञानी, और इसका हिसाब रखे कि कौन किसकी स्त्री के साथ गमन कर रहा है! तो ये ज्ञानी न हुए, पुलिस के दरोगा! ___ और तुम कहते हो, संतों का कहना है ? संत ऐसी बात बोलें तो सिर्फ इससे इतना ही पता चलता है, अभी संतत्व का जन्म नहीं हुआ। अभी दूर है; अभी बहुत दूर है मंजिल। . पहली तो बात यह कि परस्त्री कौन? तमने सात चक्कर लगा लिये, बस स्त्री तम्हारी हो गई? इतना सस्ता मामला! मगर इस देश में इस तरह की मूढ़ता रही है। स्त्री को स्त्री-धन कहते हैं; उस पर मालकियत कर लेते हैं। कौन किसका है यहां? कौन अपना, कौन पराया? ज्ञानी तो यही कहते हैं, न कोई अपना न कोई पराया। संत तो यही कहते हैं, अपना-पराया छोड़ो। तो जिन्होंने यह कहा होगा वे संत के वेश में कोई और रहे होंगे-पंडित, पुजारी, राजनीतिज्ञ, समाज के कर्ता-धर्ता; लेकिन संत नहीं। संत तो यही कहते हैं कि अपनी स्त्री भी अपनी नहीं है, परायी की तो बात ही छोड़ो। यह तो तुमने खूब होशियारी की बात बताई: कि परस्त्री-गमन से साधक का पतन होता है। और अपनी स्त्री के गमन से नहीं होता? और अपना कौन है? जिसको कुछ मूढ़ जनों ने खड़े होकर और ताली बजाकर और तुम्हें चक्कर लगवा दिये वह अपना है? एक सज्जन मेरे पास आते हैं। वे कहते हैं, बड़ी उलझन में पड़ गया हूं इस पत्नी से विवाह करके। मैंने उनसे कहा कि फिर छटकारा कर लो। जब इतना...बार-बार तम आते हो और एक ही झंझट: तुम्हारी पत्नी भी दुखी, तुम भी दुखी। तो उन्होंने कहा, अब कैसे छुटकारा करें? सात चक्कर पड़ गये। तो मैंने कहा, उल्टे चक्कर लगा लो। अब इससे ज्यादा और क्या करना है ? खुल जायेंगे चक्कर। जैसे बंध गये वैसे खोल लो। हर गांठ खुल सकती है। यह गांठ भी खुल सकती है। अगर गांठ बहुत दुख दे रही है तो खोल ही लो। जो चीज बंध सकती है, खुल सकती है। जो बांधी है वह कृत्रिम है। संत तो तुमसे कहते हैं, कोई अपना नहीं। बस तुम ही अपने हो। तो अगर संतों से तुम पूछो तो वे कहेंगे, पर-गमन से पतन होता है। स्त्री इत्यादि का कोई सवाल नहीं; पर-गमन, दूसरे में जाने से, दूसरे के साथ संबंध जोड़ने से, दूसरे को अपना-पराया मानने से, दूसरे को महत्वपूर्ण मानने से पतन होता है। स्व महत्वपूर्ण है, पर पतन है। तो स्वात्माराम बनो। अपनी आत्मा में लीन हो जाओ। संत तो ऐसा कहेंगे। और जिन्होंने परस्त्री इत्यादि का हिसाब लगाया हो वे संत नहीं हैं। संत तो इतना ही कहेंगे, पर-गमन से पतन होता है इसलिए स्व-गमन करो। बाहर जाने से पतन होता है, 1150 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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