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________________ पक्षपात, शास्त्र, सिद्धांत, जो तुमने मान रखी हैं बातें, उनसे पर्दा बना है। पर्दा तुम्हारी मान्यता से बुना गया है। रंग-बिरंगी मान्यतायें तमने इकट्री कर लीं बिना जाने। सोवियत रूस में कोई आस्तिक नहीं, क्योंकि सरकार नास्तिक है। स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय नास्तिकता पढ़ाते हैं। नास्तिक होने में लाभ है। आस्तिक होने में नुकसान ही नुकसान है रूस में। आस्तिक हुए कि कहीं न कहीं जेल में पड़े। आस्तिक हुए कि झंझट में पड़े। नास्तिक होने में लाभ ही लाभ है। __ जैसे यहां भारत में आस्तिक होने में लाभ ही लाभ है, नास्तिक होने में हानि ही हानि है, ऐसी ही हालत वहां है। कुछ फर्क नहीं है। यहां बैठे हैं दूकान पर माला लिये, लाभ ही लाभ है। जेब काट लो ग्राहक की, उसको पता ही नहीं चलता। वह माला देखता रहता है। वह कहता है, ऐसा भला आदमी! तो मुंह में राम-राम, बगल में छुरी चलती। और राम-राम से छुरी पर खूब धार रख जाती। ऐसी चलती कि पता भी नहीं चलता। जिसकी गर्दन कट जाती है वह भी राम-राम सुनता रहता। उसको पता ही नहीं चलता। वह राम-राम जो है, अनेस्थेशिया का काम करता है। गर्दन काट दो, पता ही नहीं चलता। ___ यहां तो आस्तिक होने में लाभ है। यहां नास्तिक होने में हानि ही हानि है, इसलिए लोग आस्तिक हैं। यह धंधा है। यह सीधे लाभ की बात है। रूस में लोग नास्तिक हैं। तुम पक्का समझना, अगर तुम रूस में होते, तुम नास्तिक होते। तुम आस्तिक नहीं हो सकते थे। क्योंकि जिस बात में लाभ है यहां, वही तुम हो। वहां जिस बात में लाभ होता वही तुम होते। रूस बड़ा आस्तिक देश था उन्नीस सौ सत्रह के पहले। जमीन पर थोड़े-से आस्तिक देशों में एक आस्तिक देश था। लोग बड़े धार्मिक थे। पंडा, पुजारी, पुरोहित, चर्च... । अचानक उन्नीस सौ सत्रह में क्रांति हुई और पांच-सात साल के भीतर सारा मुल्क बदल गया। छोटे बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब नास्तिक हो गये। यह भी खब हआ। जैसे यह भी सरकार के हाथ में है। यह भी जिसके हाथ में ताकत है वह तुम्हारी धारणा बदल देता है। __ ये धारणाएं दो कौड़ी की हैं। ये तुम्हारे अनुभव पर निर्भर नहीं हैं। इनके पीछे चालबाजी है। दूसरों की चालबाजी, तुम्हारी चालबाजी। इनके पीछे चालाकी है। इनके पीछे कोई अनुभव नहीं है। धारणाएं छोड़ो। मैं तुमसे न नास्तिक बनने को कहता, न आस्तिक। मैं कहता हूं, धारणाएं छोड़ो। यह तानाबाना धारणाओं का अलग करो। खुली आंख! कहो कि मुझे पता नहीं। घबड़ाते क्यों हो? यह बात कहने में बड़ा डर लगता है आदमी को कि मुझे पता नहीं। इस बात से बचने के लिए वह कुछ भी मानने को तैयार है। किसी से पूछो, ईश्वर है? तुम शायद ही ऐसा हिम्मतवर आदमी पाओ, जो कहे कि नहीं, मैं अज्ञानी हूं, मुझे कुछ पता नहीं। मैं इसी आदमी को धार्मिक कहता हूं। यह ईमानदार है। दूसरे तुम्हें मिलेंगे। कोई कहेगा कि हां, मुझे पता है ईश्वर है। पूछो, कैसे पता है? तो वह कहता है, मेरे पिताजी ने कहा है। पिताजी का पता लगाओ, उनके पिताजी कह गये हैं। ऐसे तुम पता लगाते जाओ, तुम बड़े हैरान होओगे। तम कभी उस आदमी को न खोज पाओगे जिसने कहा है, जिसको अनुभव हआ है। सुनी बात है। इसलिए तो शास्त्रों को हिंदुओं ने अच्छे नाम दिये हैं। शास्त्रों के दो नाम हैं : श्रुति, स्मृति। श्रुति 140 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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