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इस आदमी के सिर पर मार दिया। सोचा भी नहीं कि यह मर जायेगा। ____ इसने जो गाली दी है वह क्या इतनी मूल्यवान है कि इसका जीवन ले लो? यह हिसाब-किताब ही न लगाया। असल में यह खयाल ही न था कि यह मर जायेगा। न मारने के लिए पत्थर उठाया था। बस, हो गया। जब मर गया तब तुम घबड़ाये कि यह क्या हो गया? यह मैंने क्या कर लिया? जब हाथ पर खून दिखाई पड़ा।
सौ में से निन्यानबे हत्याएं बेहोशी में होती हैं। हत्यारा वस्तुतः जिम्मेवार नहीं होता। और अगर तुम अपने भीतर गौर से देखोगे तो तुम्हारे भीतर भी यह हत्यारा बैठा हुआ है और कभी भी प्रकट हो सकता है। तुम यह भरोसा मत करना कि तुमने अभी तक हत्या नहीं की है तो कल नहीं करोगे। तुम भी कर सकते हो। बेहोश आदमी का क्या भरोसा! कुछ भी कर सकता है।
न तुमने प्रेम होश में किया है, न घृणा होश में की है। न मित्र होश में बनाये, न शत्रु होश में बनाये। ऐसी बेहोश अवस्था का नाम मूढ़ता है। महावीर ने इस अवस्था को प्रमाद कहा है, बुद्ध ने मूर्छा कहा है, अष्टावक्र मूढ़ता कहते हैं। ___ मूढ़ जरूरी रूप से अज्ञानी नहीं है। अज्ञानी से मेरा मतलब, पंडित हो सकता है मूढ़, बड़ा ज्ञानी हो सकता है, बड़ा जानकार हो सकता है, बड़ी सूचनाओं का धनी हो सकता है, लेकिन फिर भी मूर्छित है।
तत्वनिश्चयमात्रेण प्राज्ञो भवति निर्वृतः। . 'और ज्ञानी पुरुष केवल तत्व को निश्चयपूर्वक जानकर सुखी हो जाता है।' - कुछ करता नहीं। न तो प्रयत्न करता है, और न अप्रयत्न करता है; करता ही नहीं। इतना जानकर कि सुख मेरा स्वभाव है, बस इतना निश्चयपूर्वक जानकर, ऐसी जानने की एक किरण मात्रतत्वनिश्चयमात्रेण; बस इतनी-सी बात, और ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है। ___रिझाई के संबंध में उल्लेख है—एक जापानी झेन फकीर के-वह एक मंदिर के पास से गुजरता था और मंदिर में बौद्धों का एक सूत्र पढ़ा जा रहा था। ऐसे मंदिर के द्वार से गुजरते हुए, सुबह का समय है, अभी पक्षी गुनगुना रहे, सूरज निकला है, सब तरफ शांति और सब तरफ सौंदर्य दिख रहा है। उस मठ के भीतर होती हुई मंत्रों की गूंज! उसे एक मंत्र सुनाई पड़ गया—ऐसे ही निकलते। सुनने भी नहीं आया था, कहीं और जा रहा था, सुबह घूमने निकला होगा। मंत्र था, जिसका अर्थ था कि 'जिसे तुम बाहर खोज रहे हो वह भीतर है।'
साधारण-सी बात। ज्ञानी सदा से कहते रहे हैं, प्रभु का राज्य तुम्हारे भीतर है, आनंद तुम्हारे भीतर है, आत्मा तुम्हारे भीतर है। ऐसा ही सूत्र, कि जिसे तुम बाहर खोज रहे हो वह तुम्हारे भीतर है।
कुछ झटका लगा। जैसे किसी ने नींद में चौंका दिया। ठिठककर खड़ा हो गया। जिसे तुम बाहर खोज रहे हो, तुम्हारे भीतर है ? बात तीर की तरह चुभ गई। बात गहरी उतर गई। बात इतनी गहरी उतर गई कि रिझाई रूपांतरित हो गया। कहते हैं, रिझाई ज्ञान को उपलब्ध हो गया। समाधि उपलब्ध हो गई। __ खोजने भी न गया था। समाधि की कोई चेष्टा भी नहीं थी। सत्य की कोई जिज्ञासा भी नहीं थी। मंदिर से ऐसे ही अनायास गुजरता था। और ये शब्द कोई ऐसे विशिष्ट नहीं हैं। हर मंदिर में ऐसे सूत्र
जानो और जागो!
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