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________________ तुम बिलकुल ठीक हो। तुम्हारे घर के लोग ठीक कहते हैं, इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम गलत हो । तुम्हारे घर के लोग ठीक कहते हैं; मगर तुम भी बिलकुल ठीक हो। यह मामला ही पागलपन का है। सत्य को खोजने समझदार थोड़े ही जाते हैं- समझदार दुकान चलाते हैं, धन कमाते हैं, दिल्ली जाते हैं। समझदार ऐसी उलझनों में नहीं पड़ते हैं। यह तो पागलों के लिए ही यह है । मीरा ने कहा है : सब लोक-लाज खोई । घर के लोग मीरा के भी, चिंतित हो गये। जहर इसीलिए तो भेजा कि यह मर ही जाये। क्योंकि घर की बदनामी होने लगी। राजघराने की महिला रास्तों पर नाचने लगी। यह बात घर के लोगों को न जंची। घर के लोगों को कष्ट मालूम होने लगा। यह तो कुल की सारी प्रतिष्ठा गंवा देगी। राह-राह नाचने लगी । साधु-सधुक्कड़ों के साथ बैठने लगी । भीड़-भाड़ में खड़ी हो गई। पर्दा उठ गया। कभी नाचते हुए वस्त्र सरक जाते होंगे। संस्कार, संस्कृति, सभ्यता, सब गंवाने लगी। घर के लोगों ने जहर भेजा होगा, निश्चित भेजा होगा – सिर्फ इसीलिए कि यह उपद्रव मिटे । उनके अहंकार को चोट लगने लगी होगी । मेरे पास तुम हो, लोक-लाज तो गंवानी ही होगी। जिसने पूछा है, संन्यासी हैं: स्वामी रामकृष्ण भारती । तो संन्यासी का तो अर्थ ही यही होता है कि रंग गये अब तुम पागलपन में । ये गैरिक वस्त्र पागलपन के वस्त्र हैं— सदा से, सनातन से । ये मस्तों के वस्त्र हैं। ये धुनियों के वस्त्र हैं- जिन्होंने संसार से पीठ फेर ली और जिन्होंने कहा, हम प्रभु की यात्रा पर जाते हैं और सब दांव पर लगाने के लिए तत्पर हैं। अब ऐसी कोई बात नहीं है: परमात्मा मांगेगा और हम इनकार करेंगे। यह पागलपन तो है ही । यह कोई दुकानदारी थोड़े ही है । यह तो जुआ है। यह तो जुआरियों का काम है। इसमें समझाने की फिक्र मत करो। घर के लोग ठीक ही कहते हैं। हंसना और नाचना और गाना | घर के लोग गलत नहीं कहते। उनके देखने के अपने मापदंड हैं— शादी करो, नौकरी करो, बच्चे पैदा करो; जो उन्होंने किया वह तुम भी करो। और तुम भी अपने बच्चों को यही समझाना कि यही समझदारी है और यह पहिया चलाते रहना। तुम बच्चे पैदा करना, बच्चों के लिए जीना। बच्चों को कहना: तुम बच्चे पैदा करो, उनके लिए जीयो । और ऐसा ही चलता रहे। न उनमें से कोई जीया है - तुम्हारे मां-बाप में से; न तुम्हारे मां-बाप के मां-बाप में से कोई जीया है । सब स्थगित कर दिये हैं जीवन को । तो जब भी कोई इस भीड़ में से जीने के लिए तत्पर होता है, भीड़ को लगता है: यह पागल हुआ । अरे, कहीं कोई जीता है, कहीं कोई ध्यान करता है! ये बातें शास्त्रों में लिखी हैं, ठीक हैं। शास्त्र पढ़ लो! बहुत हो, पूजा के दो फूल चढ़ा दो ! अगर ऐसा कोई मिल जाये और बहुत भाव हो जाये तो झुककर पैर छू लेना और अपने घर आ जाना और भूल जाना। ये बातें पढ़ने की नहीं हैं। तुमने देखा, तुम्हारे पड़ोसी के बेटे को अगर संन्यास का पागलपन चढ़ जाये तो तुम भी उसके पैर छूने चले जाते हो; लेकिन तुम्हारा बेटा अगर संन्यासी हो जाये तो बड़े नाराज होते हो। बचपन में मेरे घर संन्यासियों का आवागमन होता रहता था। मेरे पिता को उनमें रस था । एक संन्यासी आये थे । वह मेरी पहली याद है संन्यासियों के बाबत | मेरे पिता उनके पैर छूने गये, तो मैंने उनसे पूछा कि अगर मैं संन्यास ले लूं तो आप आनंदित होंगे ? उन्होंने कहा: 'क्या पागलपन की बात है!' तो मैंने कहा: 'इस पागल के पैर छूने आप गये ! अगर संन्यासी होना पागलपन है तो पागल के एकाकी रमता जोगी 101
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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