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तुमने कहानी तो पढ़ी है न पुराणों में सागर-मंथन की! पहले विष निकला, फिर अमृत निकला। तुम पढ़ते भी हो, लेकिन अंधे हो। जहां से विष निकला, वहीं से अमृत निकला। पहले विष निकला, फिर अमृत निकला। अंततः अमृत का घट निकला।
खोजे जाओ। जीवन तो सागर-मंथन है। विष से ही थककर मत बैठ जाना। नहीं तो जीवन की तुमने अधूरी तस्वीर ले ली, झूठी तस्वीर ले ली। और अगर तुमको जीवन में विष ही मिला, तो फिर परमात्मा को कहां खोजोगे? जीवन के अतिरिक्त और तो कोई स्थान नहीं है। कहां जाओगे? फिर तुम्हारा परमात्मा झूठा होगा। नहीं, खोदो! गहरे खोदो! खोदते जाओ। जब तक अमृत का घट न निकल आये, तब तक खोदते जाना।
सच कहते हैं शास्त्र : जीवन में विष है। और सच कहते हैं शास्त्र : जीवन में अमृत है। लेकिन तुम्हारे जीवन के अनुभव से दोनों का तुम्हें साक्षी बनना है।
अभी तुम जो जीवन जानते हो वहां विष ही विष है। लेकिन उसका कारण जीवन नहीं, उसका कारण तुम्हारी गलत जीवन-दशा है; तुम्हारी गलत चैतन्य की दशा है।
नभ की बिंदिया चंदावाली भूखी अंगिया फूलोंवाली सावन की ऋतु झूलोंवाली फागुन की ऋतु भूलोंवाली कजरारी पलकें शरमीली निंदियारी अलकें उरझीली गीतोंवाली गोरी ऊषा सुधियोंवाली संध्या काली हर चूनर तेरी चूनर है हर चादर तेरी चादर है मैं कोई चूंघट छुऊं तुझे ही बेपरदा कर आता हूं हर दर्पण तेरा दर्पण है। पानी का स्वर रिमझिम-रिमझिम माटी का रुख रुनझुन-रुनझुन बातून जनम की कुनुन-मुनुन खामोश मरण की गुपुन-चुपुन नटखट बचपन की चलाचली लाचार बुढ़ापे की थमथम दुख का तीखा-तीखा क्रंदन सुख का मीठा-मीठा गुंजन हर वाणी तेरी वाणी है
एकाकी रमता जोगी
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