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________________ पांचवां प्रश्न: शास्त्रों में संसार को विषवत कहा है। और आप कहते हैं, संसार से भागो मत ! इससे मन में बड़ी उलझन पैदा होती है । शा स्त्रों ने संसार को क्या कहा है, शास्त्र पढ़कर तुम न जान सकोगे। संसार में जाकर ही जान सकोगे कि शास्त्र सच कहते कि झूठ कहते। कसौटी कहां है? परीक्षा कहां होगी ? शास्त्र संसार को विषवत कहते हैं, ठीक । शास्त्र कहते हैं, इतना तो जान लिया। ठीक कहते हैं कि गलत कहते हैं, यह कैसे जानोगे ? शास्त्र में लिखा है, इससे ही ठीक थोड़े ही हो जायेगा। सिर्फ लिखे मात्र होने से कोई चीज ठीक थोड़े ही हो जाती है। लिखे शब्द के दीवाने मत बनो। कुछ पागल ऐसे हैं कि लिखे शब्द के दीवाने हैं; जो चीज लिखी है, वह ठीक होनी चाहिए। एक सज्जन एक बार मेरे पास आये। उन्होंने कहा, जो आपने कहा, वह शास्त्र में नहीं लिखा है, ठीक कैसे हो सकता है ? तो मैंने कहा: मैं लिखकर दे देता हूं। और क्या करोगे ? लिखे पर भरोसा है, तो छपवाओ। छपवाकर दे दूं, कहो । हस्तलिखित पर भरोसा हो तो हस्तलिखित लिखकर दे दूं । और क्या चाहते हो ? शास्त्र कैसे बनता है ? किसी के लिखने से बनता है । किसी ने तीन हजार साल पहले लिख दिया, इसलिए ठीक हो गया और मैं आज लिख रहा हूं, इसलिए गलत हो जायेगा ? तीन हजार साल के फासले से कुछ गलत-सही होने का संबंध है? फिर तो तीन हजार साल पहले चार्वाकों भी शास्त्र लिखा है, फिर तो वह भी ठीक हो जायेगा। तीन हजार साल पहले से थोड़े ही कोई चीज ठीक होती है। मुल्ला नसरुद्दीन, चुनाव आया तो बड़ा नाराज हुआ। उसकी पत्नी का नाम वोटर लिस्ट में नहीं था। लिया पत्नी को साथ और पहुंचा ऑफिसर के पास - चुनाव ऑफिसर के पास । और उसने कहा कि देखें, मेरी पत्नी जिंदा है और वोटर लिस्ट में लिखा है कि मर गई । झगड़ने को तैयार था । पत्नी भी बहुत नाराज थी। ऑफिसर ने वोटर लिस्ट देखी और कहा, भई लिखा तो है कि मर गई। तो पत्नी बोली कि जब लिखा है तो ठीक ही लिखा होगा। अरे लिखनेवाले गलत थोड़े ही लिखेंगे ! घर चलो। जब लिखा है तो ठीक ही लिखा होगा ! कुछ लोग लिखे पर बिलकुल दीवाने की तरह भरोसा करते हैं। शास्त्र में लिखा है, इससे क्या होता है ? इससे इतना ही पता चलता है कि जिसने शास्त्र लिखा होगा, उसने जीवन का कुछ अनुभव किया था, अपना अनुभव लिखा है। तुम भी जीवन के अनुभव से ही जांच पाओगे कि सही लिखा कि गलत लिखा है । कसौटी तो सदा जीवन है। वहीं जाना पड़ेगा। आखिरी परीक्षा तो वहीं होगी। इसीलिए मैं तुमसे कहता हूं : भागो मत! शास्त्र की सुनकर मत भाग जाना, नहीं तो तुम्हारा शास्त्र कभी पैदा न होगा। अपना शास्त्र जन्माओ । अपने अनुभव को पैदा करो। क्योंकि तुम्हारा शास्त्र ही तुम्हारी मुक्ति बन सकता है। किसी ने तीन हजार साल पहले लिखा था, उसकी मुक्ति हो गई होगी। इससे तुम्हारी थोड़े ही हो जायेगी । उधार थोड़े ही होता है ज्ञान । इतना सस्ता थोड़े ही होता है ज्ञान । जलना पड़ता है, कसना पड़ता है। हजार ठोकरें खानी पड़ती हैं। तब कहीं जीवन के गहन अनुभव से एकाकी रमता जोगी 97
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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