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________________ तुम तनिक संकेत नयनों से करो तो! आज आंखों में प्रतीक्षा फिर भरो तो! राह अपनी मैं स्वयं पहचान लूंगा लालिमा उठती किधर से, जान लंगा कालिमा मेरे दृगों की तुम हरो तो! आज आंखों में प्रतीक्षा फिर भरो तो! थोड़ी-सी आंख की कालिख हट जाये तो तुम साक्षी हो गये। तुम तनिक संकेत नयनों से करो तो! आज आंखों में प्रतीक्षा फिर भरो तो! प्रभु की जरा प्रतीक्षा शुरू हो जाये तो तुम साक्षी हो गये। जब तक तुम वासना कर रहे हो वस्तुओं की, तब तक कर्ता रहोगे। जब तुम प्रभु की प्रतीक्षा करने लगोगे, वस्तुओं की कामना नहीं, तब तुम साक्षी होने लगोगे। आंख में जरा प्रतीक्षा आ जाये तो तुम शांत होने लगोगे। कालिमा मेरे दृगों की तुम हरो तो! आज आंखों में प्रतीक्षा फिर भरो तो! जरा-सी आंख की कालिख अलग करनी है! कर्ता से मत उलझो। दृष्टि को सुधार लो, साफ कर लो। ऐसा ही समझो कि तुम्हारे आंख में एक किरकिरी पड़ गई है, जरा-सा तिनका पड़ गया है। और उसके कारण कुछ दिखाई नहीं पड़ता। किरकिरी अलग हो जाये आंख से, दृष्टि फिर साफ हो जाती है, सब दिखाई पड़ने लगता है। हिमालय जैसी बड़ी चीज भी आंख में जरा-सा रेत का कण पड़ जाये तो हिमालय भी छिप जाता है। रेत का कण हिमालय को छिपा लेता है। रेत का कण हट जाये, हिमालय फिर प्रगट हो गया। __विराट को छिपा लिया है जरा-सी बात ने कि तुम साक्षी नहीं रह गये। इसे तुम जगाना शुरू करो। जैसे-जैसे तुम जागोगे, तुम्हारे भीतर सब मौजूद है, सब ले कर ही आये हो, उसका स्वाद फैलने लगेगा। तुम्हें कुछ पाना नहीं है। अष्टावक्र का परम सूत्र यही है कि तुम जैसे हो ऐसे ही परिपूर्ण हो। जैसे तुम यहां बैठे हो इस क्षण, परमात्मा तुम्हारे भीतर विराजमान है, अपनी परिपूर्ण लीलाओं में मौजूद है। श्री रमण को किसी ने पूछा कि क्या आप दावा करते हैं कि अवतार हैं? तो श्री रमण ने कहा : 'अवतार तो आंशिक होता है, ज्ञानी पूर्ण होता है। अवतार का तो मतलब थोड़ा-सा परमात्मा उतरा! ज्ञानी तो पूरा परमात्मा होता है। क्योंकि ज्ञानी जानता है परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी नहीं है।' पूछने वाला तो शायद यही पूछने आया था कि शायद रमण दावा करें कि मैं अवतार हूं। वह तो विवाद करने आया था, पंडित था! और रमण ने कहा: 'अवतार! छोटी-मोटी बात क्या उठानी! अवतार नहीं हूं, पूर्ण ही हूं!' मैं तुमसे कहता हूं : तुम भी पूर्ण हो। प्रत्येक पूर्ण है। पूर्ण से पूर्ण ही पैदा होता है। हम परमात्मा 24 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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