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संन्यास है। 'सम्यक न्यास' अर्थात संन्यास। बीच में ठहर जाना। संतुलित हो जाना। सहज भाव में , संतुलन संन्यास है। क्योंकि सहज भाव ही मध्य भाव है। वही स्वर्ण-सूत्र है।
ऐसे ये अनूठे सूत्र हैं। सुन कर ही मत समझ लेना पूरे हो गये। सुनने से तो यात्रा शुरू होती है। गुनना! खूब-खूब चूसना इन सूत्रों को। इनका स्वाद लेना। चबाना। पचाना। ये धीरे-धीरे तुम्हारे । रक्त-मांस-मज्जा में मिल जायेंगे। और तब इनसे अपूर्व सुगंध उठेगी। ऐसी सुगंध, जो तुमने पहले नहीं जानी। और ऐसी सुगंध, जो तुम्हारे भीतर छुपी है। कस्तूरी कुंडल बसै! तुम्हारी कस्तूरी खुल जाये, तुम्हारी कस्तूरी प्रगट हो जाये कि परमात्मा फिर विजयी हुआ, तुममें फिर से जीता। फिर एक फूल खिला। फिर परमात्मा के लिए एक उत्सव का क्षण आया। ___ इन सूत्रों को सुनने में भी रस है, गुनने में तो बहुत महारस होगा। और जब तुम इन्हें जीयोगे तब तुम पाओगे जीवन का पूरा अर्थ, जीवन की पूरी निर्झरणी तुम्हें उपलब्ध हो जायेगी।
अमृत के द्वार खुल सकते हैं। और तुम द्वार पर खड़े हो, दस्तक देने की ही बात है। जीसस ने कहा है : खटखटाओ और द्वार खुल जायेंगे।
फकीर हसन एक मस्जिद के सामने खड़ा चिल्ला रहा था कि प्रभु द्वार खोलो, मैं कब से बुला रहा हूं! एक दूसरी फकीर औरत राबिया निकलती थी पास से, उसने कहा ः 'हसन, बंद कर बकवास! द्वार बंद कहां हैं? द्वार खुले हैं, आंख खोल!'
राबिया ठीक कहती है। जीसस से भी ज्यादा ठीक है उसका वचन। जीसस कहते हैं : खटखटाओ और द्वार खुल जायेंगे। हसन वही तो कर रहा था। वह कह रहा था ः हे प्रभु द्वार खोलो। और राबिया ने कहा ः बंद कर बकवास, हसन। द्वार खुले हैं, आंख खोल। खटखटाने की भी कोई जरूरत नहीं है।
तुम मंदिर में विराजमान ही हो, भीतर जाने की भी कोई जरूरत नहीं। भीतर तुम हो। तुम जहां हो. वहीं सब उपलब्ध है। थोडे जागो। तो द्वार खटखटाओ. इसका अर्थ अपने को थोडा खटखटाओ. अपने को थोड़ा झकझोरो। जैसे सुबह नींद से उठ कर झकझोरते हो, ऐसे इस संसार की नींद से अपने को झकझोरो। नहीं तो दुख ही दुख है; सार जरा भी नहीं। जागे तो ही सार है।
हरि ॐ तत्सत्!
साक्षी स्वाद है संन्यास का
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