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अगर ऐसा होता तो अष्टावक्र बोल किससे रहे हैं? जनक तो है ही नहीं फिर, समझा किसको रहे हैं? नहीं; 'कहां संसार' का अर्थ है : कहां सपना! 'संसार' शब्द का अर्थ है तम्हारे भीतर चलते हए सपनों की दौड़-ऐसा हो जाये, ऐसा पा लूं, ऐसा कर लूं। वह जो तुम्हारे भीतर शेखचिल्ली बैठा है, उस शेखचिल्ली की ही यात्रा का नाम संसार है।
इसे मैं तुम्हें बार-बार समझा देना चाहता हूं, नहीं तो तुम्हें बड़ी भ्रांति होती है। तुम सोचते हो संसार छोड़ने का अर्थ घर-द्वार छोड़ो। संसार छोड़ने का अर्थ है : भविष्य छोड़ो! संसार छोड़ने का । अर्थ है : अतीत छोड़ो। संसार छोड़ने का अर्थ है : कल्पना-विकल्पना छोड़ो। 'कहां संसार!'
और बड़ा अदभुत सूत्र है! अष्टावक्र कहते हैं : ‘ऐसे व्यक्ति को कहां ध्यान और कहां मुक्ति!'
सब गया। जब बीमारी गई तो औषधि भी गई। तुम्हारी जब बीमारी चली जाती है तो तुम औषधि की बोतलें थोड़े ही टांगे फिरते हो कि इनका बड़ा धन्यवाद, कि इन्हीं के कारण बीमारी गई, अब इनको कैसे छोड़ें, कि अब तो इनको हम सदा टांगे फिरेंगे! ये पेन्सिलिन का इंजेक्शन, इसी के कारण बीमारी गई, तो अब इसकी पूजा करेंगे! जिस दिन बीमारी गई उसी दिन तुम कचरे-घर में फेंक आते हो सब दवाइयां, बात खतम हो गई।
ध्यान तो औषधि है। विचार बीमारी है; ध्यान औषधि है। संसार बीमारी है; मोक्ष औषधि है। जब संसार ही न रहा तो कहां मोक्ष, कैसा मोक्ष! जिससे बंधे थे वही न रहा, तो अब कैसा छुटकारा! . यह तुम्हें बड़ा कठिन मालूम पड़ेगा, क्योंकि तुमने यह तो सुना है कि संसार नहीं रह जायेगा, तब तमने मान रखा है कि मोक्ष होगा। लेकिन अष्टावक्र ठीक कह रहे हैं. बिलकल ठीक कह रहे हैं। अष्टावक्र के वचन ऐसे सत्य हैं अध्यात्म के जगत में, जैसे गणित के जगत में आइंस्टीन के वचन सत्य हैं। बड़ी गहरी आंख है। ये कह रहे हैं कि जब बीमारी चली गई तो औषधि भी गई। जब संसार ही न बचा तो अब मोक्ष की बात ही क्या उठानी।
सर्वसंकल्पसीमायां विश्रांतस्य महात्मनः। • अब तो सबसे विश्रांति हो गई-संसार से, मोक्ष से, विचार से, ध्यान से।
क्व मोहः क्व विश्वं क्व ध्यानं क्व मुक्तता। अब कैसा संसार, कैसी मुक्ति, कैसा बंधन, कैसी स्वतंत्रता! सब गये, साथ ही साथ गये।
हमारे जीवन के सभी द्वैत साथ ही साथ जाते हैं। तुम बहुत हैरान होओगे: जिस दिन तुम्हारे जीवन से दुख चला जाता है उसी दिन सुख भी चला जाता है। और उस दशा को ही हमने आनंद कहा है। जिस दिन तुम्हारे जीवन से संसार जाता है, उसी दिन मोक्ष भी चला जाता है। और उसी दशा को हमने स्वभाव कहा है, सत्य कहा है।
"जिसने इस जगत को देखा है, वह भला उसे इंकार भी करे'-सुनना-'लेकिन वासनारहित पुरुष को क्या करना है; वह देखता हुआ भी नहीं देखता है।'
'जिसने इस संसार को देखा है, वह भला उसे इंकार भी करे...।'
वह जो भाग रहा है संसार से, उसको अभी भी संसार दिखाई पड़ रहा है, नहीं तो भागेगा क्यों? भाग कहां रहा है ? किससे भाग रहा है? अगर कोई डर कर भाग रहा है स्त्री से, तो स्त्री में उसकी
साक्षी स्वाद है संन्यास का
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