________________
पहला प्रश्नः आपने संन्यास देते ही मुक्त करने की बात कही, लेकिन मुक्त होते ही संन्यासी का जीवन आमूल रूप से परिवर्तित क्यों नहीं हो पाता है? हालत ऐसी है कि संन्यास के बाद भी वह अपनी पुरानी मनोदशा में ही जीता है। कभी-कभी तो सामान्य सतह से भी नीचे गिर जाता है। मुक्ति का सुवास उसे तत्क्षण एक ईमानदार महामानव क्यों नहीं बना पाता? क्या इससे 'संचित' का संकेत नहीं मिलता कि सब कुछ पूर्व-कर्म से बंधा है, नियत है?
हली बात : मैंने कहा, मैं संन्यास देते | ही तुम्हें मुक्त कर देता हूं; मैंने यह
| नहीं कहा कि तुम मुक्त हो जाते हो। मेरे मुक्त करने से तुम कैसे मुक्त हो जाओगे? मेरी घोषणा के साथ जब तक तुम्हारा सहयोग न हो, तुम मुक्त न हो पाओगे। तुमने अगर अपने बंधनों में ही प्रेम बना रखा है और जंजीरें तुम्हें आभूषण मालूम होने लगी हैं और कारागृह को तुम घर समझते हो, तो मैंने कह दिया कि तुम मुक्त हो गये, लेकिन इससे तुम खुले आकाश के नीचे न आ जाओगे। मेरी घोषणा काफी नहीं है; तुम्हारा सहयोग जरूरी है।
मेरी तरफ से तो तुम मुक्त ही हो। मेरी तरफ से तो कोई व्यक्ति अमुक्त है ही नहीं, अमुक्त हो ही नहीं सकता। अमुक्ति एक स्वप्न है; आंख खोलने की बात है, समाप्त हो जायेगा। लेकिन तुम मेरी घोषणा मात्र से मुक्त नहीं हो जाते। तुम नये-नये बहाने खोजते हो।
__ अब तुम यह बहाना खोज रहे हो कि क्या इससे 'संचित' का संकेत नहीं मिलता कि सब कुछ पूर्व-कर्म से बंधा है, नियत है?
तुम चाहते हो किसी तरह तुम अपनी जिम्मेवारी, अपना दायित्व टाल दो; तुम कह दो, 'हमारे किए क्या होगा! सब बंधा हुआ है। तुम बचना चाहते हो। तुम सहयोग तक करने से बचना चाहते हो। तुम आंख तक खोलने से बचना चाहते हो। तुम अपनी बंद आंख के लिए हजार बहाने खोजते
हो।
प्रश्न महत्वपूर्ण है, सभी के काम का है : 'आपने संन्यास देते ही मुक्त करने की बात कही...।'
मैं इसीलिए कहता हूं कि मैंने मुक्त कर दिया, क्योंकि तुम मुक्त हो; मेरे किए से नहीं मुक्त हो जाते। मुक्ति तुम्हारा स्वभाव है। मैं तुम्हारे स्वभाव की घोषणा कर रहा हूं। तुम मेरे वक्तव्य को गलत मत समझ लेना। तुम यह मत समझ लेना कि मैं तुम्हें मुक्त कर रहा हूं। मुक्त तो तुम थे ही; भूल गये थे, याद दिला दी।
सदगुरु सिवाय स्मरण दिलाने के और कुछ भी नहीं करता है। जो तुम्हारा है वही तुम्हें दे देता है। जो तुमने मान रखा था, जगा देता है और कह देता है मान्यता थी, भ्रम था, झूठ था। तुमने रस्सी में