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यह किया, यह नहीं किया, ऐसे द्वंद्व से जो मुक्त हो गया वही योगी है। जो किया उसने किया और जो नहीं किया उसने किया— परमात्मा जाने ! जो साक्षी हो गया वही योगी है।
कृत्यं किमपि न एव न कापि हृदि रंजना ।
यथा जीवनमेवेह जीवन्मुक्तस्य योगिनः ।।
'जीवनमुक्त योगी के लिए कर्तव्य कर्म कुछ भी नहीं है । '
देखते हैं आग्नेय वचन, जलते हुए अग्नि के अंगारों जैसे वचन ! इनसे ज्यादा क्रांतिकारी उदघोष कभी नहीं हुए ।
'जीवनमुक्त योगी के लिए कर्तव्य कर्म कुछ भी नहीं है और न हृदय में कोई अनुराग है। वह इस संसार में यथाप्राप्त जीवन जीता है।'
जैसा जीवन है, वैसा है। जो मिला, मिला। जो नहीं मिला, नहीं मिला। जो हुआ, हुआ; जो नहीं हुआ, नहीं हुआ। वह हर हाल खुश है, हर हाल सुखी है।
यथा जीवनमेवेह...
जैसा जीवन है उससे अन्यथा की जरा भी आकांक्षा नहीं है। जैसा जीवन है वैसा ही जीवन है।
तुम अन्यथा की आकांक्षा किये चले जाते हो। तुम्हारे पास दस रुपये हैं तो चाहते हो बीस हो जायें। बीस रुपये हैं, तो चाहते हो चालीस हो जायें। कुछ फर्क नहीं पड़ता; चालीस होंगे, तुम चाहोगे अस्सी हो जायें । निन्यानबे का फेर तो तुम जानते ही हो। मगर यह धन के संबंध में ही लागू होता तो भी ठीक था।... तुम्हारा चेहरा सुंदर नहीं है, सुंदर हो जाये। तुम्हारा चरित्र सुंदर हो जाये, सुशील हो जाये। तुम महात्मा हो जाओ। बात वही की वही है। तुम जैसे हो वैसे में राजी नहीं; महात्मा होना है। यह क्या क्षुद्रात्मा! यह क्या पड़े घर-गृहस्थी में । तुम्हें तो बुद्ध-महावीर होना है ! कुछ होना है ! कुछ होकर रहना है ! जो तुम हो उसमें तुम राजी नहीं।
और खयाल रखना, जो तुम हो उसमें अगर राजी हो जाओ, तो ही तुम बुद्ध होते हो, तो ही तुम महावीर होते हो। महात्मा कोई लक्ष्य नहीं है जिसे तुम पूरा कर लोगे। महात्मा का अर्थ है जो जैसा है वैसे में राजी हो गया। ऐसी परम तृप्ति, कि अब इससे अन्यथा कुछ भी नहीं होना है। जो उसने बनाया, जैसा उसने बनाया । वह दिखा दे, देख लेंगे। जो वह करा दे, कर लेंगे। जब उठा ले, उठ जायेंगे । जब तक रखे, रहे रहेंगे। जैसा खेल खिला दे, खेलेंगे। ऐसी जो भावदशा है वही महात्मा की, महाशय की दशा है।
यह सूत्र बहुत मनन करना। ध्यान करना ।
कृत्यं किमपि न एव।
नहीं कोई कृत्य है।
न कापि हृदि रंजना |
और न हृदय में कुछ आकांक्षा है कि ऐसा ही हो, ऐसा कोई राग नहीं, ऐसा कोई अनुराग नहीं, ऐसा कोई मोह नहीं, ऐसी कोई ममता नहीं, आकांक्षा नहीं ।
यथा जीवनमेवेह |
जैसा जीवन है, है । बस, ऐसे ही जीवन से मैं राजी हूं। इस राजीपन का नाम : योग ।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4