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मुहम्मद तो साधारण व्यक्ति थे, गैर-पढ़े-लिखे थे, काम से काम था। यह तो कभी सोचा भी न था। जब पहली दफा मुहम्मद पर कुरान उतरी और किसी अंतरआकाश में उन्हें सुनाई पड़ा कि गुनगुना, गा! तो वे बहुत घबरा गये। लिख! तो वे बहुत घबरा गये। क्योंकि वे तो लिखना भी नहीं जानते थे। भीतर आवाज आयीं नहीं लिख सकता, पढ़! तो उन्होंने कहा, मैं पढ़ना भी नहीं जानता। वे तो दस्तखत भी नहीं कर सकते थे। वे इतने घबरा गये कि उन्हें बुखार आ गया। समझा कि कोई भूत-प्रेत है या क्या मामला है ? वे तो घर आ कर रजाई ओढ़ कर सो गये। पत्नी ने बोला, क्या हुआ? भले-चंगे गये थे, क्या हो गया? उन्होंने कहा, मत पूछ कुछ तू। वे तो दुबके पड़े रहे रजाई में, कंपते रहे और वह आवाज गूंजती रही, और वह आवाज रूप लेने लगी और कुरान की पहली आयत उतरने लगी। इसे मुहम्मद ने उतरते देखा। यह मुहम्मद से बिलकुल अलग है। इसका मुहम्मद से कुछ लेना-देना नहीं है। मुहम्मद तो जैसे बांस की पोंगरी हैं; कोई इसमें से गीत गाने लगा; किसी के स्वर इसमें भरने लगे। मुहम्मद ने तो जगह दे दी और जगह भी आश्चर्यचकित भाव में दी, कुछ पता ही नहीं कि यह क्या हो रहा है। इसके लिए कोई तैयारी न थी। यह महान कुरान उतरी। यह महाकाव्य उतरा।
इस अर्थ में कुरान अपौरुषेय है, मनुष्य की बनायी हुई नहीं है। ऐसे ही वेद उतरे। ऐसे ही बाइबिल उतरी। ऐसे ही उपनिषद उतरे। ऐसे ही धम्मपद उतरा। ऐसे ही महावीर की वाणी उतरी। नहीं, किसी ने कहा नहीं है। अस्तित्व बोला। विराट बोला। अज्ञात बोला। ... निष्कामः किं विजानाति किं ब्रूते च करोति किम्। . ऐसी वासनामुक्त दशा में जहां जान लिया गया कि आत्मा ब्रह्म है, फिर न तो कुछ कोई बोलता, न कुछ कोई जानता, न कुछ कोई करता; यद्यपि सब होता है-बोला भी जाता, किया भी जाता, जाना भी जाता। ___'सब आत्मा है ऐसा निश्चयपूर्वक जान कर शांत हुए योगी की ऐसी कल्पनाएं कि यह मैं हूं और यह मैं नहीं हूं, क्षीण हो जाती हैं।'
अयं सोऽहमयं नाहमिति क्षीणा विकल्पनाः। सर्वमात्मेति निश्चित्य तृष्णीभूतस्य योगिनः।। सर्वं आत्मा!
ब्रह्म का अर्थ है : एक ही है। और सबमें एक ही है। पत्थर से ले कर परमात्मा तक एक का ही विस्तार है, एक की ही तरंगें हैं। जड़ से ले कर चैतन्य तक एक ही प्रगट हुआ है। अनेक-अनेक रूप धरे हैं, अनेक-अनेक भाव-भंगिमाएं हैं-मगर जिसकी हैं वह एक है।
सर्वं आत्मा! सब आत्मा है। इति निश्चित्य...।
ऐसा जिसने निश्चयपूर्वक जाना, अनुभव किया, स्वाद लिया! सिर में ही न घूमी ये बातें, हृदय में उतर गयीं; ऊपर-ऊपर से न चिपकायी गयीं, भीतर से अंकुरण हुआ, उदभव हुआ!
तूष्णीभूतस्य योगिनः। ऐसा व्यक्ति परम शांति को उपलब्ध हो जाता है, परम विश्राम को। ।
तथाता का सूत्र-सेतु है
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