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है ? भेद नहीं बचा तो किसको जानेगा ? क्या कहता है ? ऐसा पुरुष क्या बोलेगा? ऐसा थोड़े ही है कि परमात्मा तुम्हें मिल जायेगा तो तुम कुछ बोलोगे और परमात्मा तुमसे कुछ बोलेगा। बोल खो जायेगा । अबोल हो जाओगे ।
तुलसीदास और दूसरे कवियों ने कहा है कि परमात्मा जो मूक हैं उन्हें वाचाल कर देता; जो पंगु हैं उन्हें दौड़ने की सामर्थ्य दे देता है । अष्टावक्र ने उल्टी बात कही है और ज्यादा सही बात कही है। अष्टावक्र ने कहा है : जो बोलते हैं उन्हें मूक कर देता है; जो दौड़ते हैं उन्हें पंगु कर देता है; जो कर्मठ थे वे आलसी शिरोमणि हो जाते हैं।
वचन है : मूकं करोति वाचालम् । मूक को वाचाल कर देता है। पर इसी वचन को उल्टी तरफ से पढ़ा जाता है, पढ़ा जा सकता है। हम कह सकते हैं: मूक को वाचाल कर देते; मूकं करोति वाचाल । हम ऐसा भी पढ़ सकते हैं : मूकं करोति वाचाल । वह जो वाचाल है उसको मूक कर देता है। वही ज्यादा सही है। वह जो बोलता है चुप हो जाता है। वह जो चलता है, रुक जाता है। वह जो आता-जाता है, अब कहीं आता-जाता नहीं, बिलकुल पंगु हो जाता है । कर्ता खो जाता, कर्म खो जाता।
'समस्त तरह की लहरें स्थूल या सूक्ष्म विसर्जित हो जातीं। ऐसा पुरुष न तो कुछ जानता, न कुछ कहता, न कुछ करता ।'
किं विजानाति किं ब्रूते च किं करोति ।
और यही परम ज्ञान की दशा है: जहां कुछ भी जाना नहीं जाता। क्योंकि न जानने वाला है, न कुछ जाना जाने वाला है। सुनते हैं यह विरोधाभासी वक्तव्य ! यही परम ज्ञान की दशा है।
किं विजानाति किं ब्रूते... ।
न कुछ कहा जाता, न कुछ कहा जा सकता।
किं करोति...।
करने को भी कुछ बचता नहीं । जो होता है होता है । जो हो रहा है होता रहता है।
कहते हैं, बुद्ध बयालीस साल तक लोगों को समझाते रहे। गांव-गांव जाते रहे। इतना बोले, सुबह से सांझ तक समझाते रहे। और एक दिन आनंद कुछ पूछता था तो आनंद से उन्होंने कहा कि आनंद तुझे पता है, बयालीस साल से मैं एक शब्द भी नहीं बोला हूं ? आनंद ने कहा कि प्रभु किसी और को आप कहते तो शायद मान भी लेता । मैं बयालीस साल से आपके साथ फिरता हूं, मैं आपकी छाया की तरह हूं; मुझसे आप कह रहे हैं कि आप कुछ नहीं बोले ! सुबह से सांझ तक आप लोगों को समझाते हैं।
बुद्ध ने कहा: आनंद, फिर भी मैं कहता हूं, तू स्मरण रखना, कि बयालीस साल से मैं एक शब्द नहीं बोला। आनंद ने कहा : गांव-गांव भटकते हैं, घर-घर, द्वार-द्वार पर दस्तक देते हैं । तो बुद्ध ने कहा : आनंद, मैं फिर तुझसे कहता हूं कि बयालीस साल से मैं कहीं आया गया नहीं । आनंद ने कहा: आप शायद मजाक कर रहे हैं। मुझे छेड़ें मत ।
लेकिन आनंद समझ नहीं पाया। यह आनंद जब स्वयं बुद्ध के विसर्जन के बाद, बुद्ध के निर्वाण के बाद ज्ञान को उपलब्ध हुआ तब समझा, तब रोया । तब रोते समय उसने कहा कि हे प्रभु, तुमने कितना समझाया और मैं न समझा। आज मैं जानता हूं कि बयालीस साल तक न तुम कहीं गये,
तथाता का सूत्र - सेतु है
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