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आपूरित हो सकोगी। तुम भरोगी। लेकिन कुछ देर खाली रहने की हिम्मत...। इस खाली रहने की हिम्मत का नाम ही ध्यान है। इस शून्य रहने की हिम्मत का नाम ही ध्यान है।
ध्यान का अर्थ है : असत्य को गिरा दिया, सत्य की प्रतीक्षा करते हैं। ध्यान का अर्थ है: विचार छोड़ दिये, निर्विचार की प्रतीक्षा करते हैं। ध्यान का अर्थ है : अहंकार को हटा दिया, अब उस निर्विकार, निरंजन की राह देखते हैं। द्वार खोल दिया है, अब जब मेहमान आयेगा, स्वागत की तैयारी है।
तीसरा प्रश्नः आपने कहा, मैं तो संन्यास देते ही तम्हें तत्काल मक्त कर देता है। तो फिर 'संचित' का क्या भविष्य बनता है? क्या वह क्षीण हो जाता है। और अगर संन्यास लेने के तुरंत बाद ही मुक्ति नहीं होती तो क्या उसका महत्वपूर्ण प्रश्न है। गौर से सुनना और अर्थ है कि संचित की चादर अभी मोटी है? समझना। मैं फिर दोहराता हूं कि फिर आपके तत्काल मुक्त कर देने का क्या मुक्ति तुम्हारा स्वभाव है; मैं मुक्त कर देता हूं, तात्पर्य है?
ऐसा थोड़े ही। मुक्ति तुम्हारा स्वभाव है। तुमने
याद कर ली, मुक्त हो गये। स्मरण भर की बात है, सुरति। याददाश्त लौटानी है। मैं तुम्हें याददाश्त दिला सकता हूं, मुक्त कैसे कर सकता हूं? तुम पर जंजीरें ही नहीं हैं। तुमने जंजीरें मान रखी हैं। मान्यता की जंजीरें हैं। मैं तुम्हें झकझोर देता हूं; कहता हूं, जरा गौर से देखो, तुम्हारे हाथ पर जंजीर नहीं है; खयाल है जंजीर का। तुमने आंख खोल कर कभी गौर से देखा ही नहीं कि हाथ पर जंजीरें नहीं हैं, पैर में बेड़ियां नहीं हैं, तुम मुक्त हो। मुक्त होना तुम्हारा स्वभाव है, तुम्हारी संपदा है। ___ इसलिए मैं कहता हूं कि मैं तो संन्यास देते ही तुम्हें तत्काल मुक्त कर देता हूं। संन्यास का मतलबः तुमने मुझे मौका दिया कि आप मुझे झकझोरेंगे तो मैं नाराज न होऊंगा। इतना ही मतलब है। संन्यास का इतना ही मतलब कि मैं राजी हूं, अगर आप मुझे जगायेंगे तो नाराज न होऊंगा। संन्यास का मतलब कि मैं उपलब्ध हूं, अगर आप कुछ चोट करना चाहें मेरे ऊपर, मेरे हृदय पर कुछ आघात करना चाहें तो मैं आपको दुश्मन न लेगा। बस इतना ही मतलब संन्यास का। ___ और जब मैं कहता हूं, मैं तुम्हें संन्यास देते ही मुक्त कर देता हूं, तो मेरा अर्थ यह है कि मुक्ति कोई वस्तु नहीं कि अर्जित करनी हो, कि जिसका अभ्यास करना हो-तुम्हारा स्वभाव है। मुक्त तुम
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4