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अहसास है कि सच हंसी भी हो सकती है। नहीं तो झूठ कहने का क्या प्रयोजन रह जायेगा? तुम कहते हो मेरा प्रेम झूठ- इसका अर्थ है, किसी अचेतन तल पर, किसी गहराई में तुम्हें भी अहसास तो होता है, साफ-साफ पकड़ न बैठती हो, धुंधला-धुंधला है सब, कुहासा छाया है बहुत, रोशनी नहीं है भीतर, अंधेरा है, अंधेरे में टटोलते हो, लेकिन लगता है कि सच प्रेम भी हो सकता है। नहीं तो इस प्रेम को झूठ कैसे कहोगे? अगर किसी समाज में सब सिक्के झूठ हों और असली सिक्का होता ही न हो, तो झूठे सिक्कों को झूठा कैसे कहोगे? झूठा कहने के लिए असली चाहिए। असली के बिना झूठा झूठा नहीं रह जाता।
नीत्शे ने कह दिया कि सच तो होता नहीं, और जो भी आदमी ने माना है, सब झूठ है।...पागल हो गया। उसने सत्य की राह भी रोक दी; झूठ को गिरा दिया और सत्य को आने न दिया। ‘सत्य तो होता नहीं। सत्य तो हो ही नहीं सकता; जो होता झूठ ही है।' आधी दूर तक ठीक गया। कहा कि संसार माया है, यहां तक तो ठीक था, यह तो सभी ज्ञानी कहते रहे लेकिन संसार इसीलिए माया है कि इस माया के कुहासे के पीछे छिपा ब्रह्म भी बैठा है। संसार असत्य है, सपना है; क्योंकि इस सपने के पीछे एक जाग्रत द्रष्टा भी छिपा है। नीत्शे ने उसे स्वीकार न किया। तो झूठ तो छोड़ दिया, झूठ की बैसाखियां गिर गयीं और अपने पैरों का तो उसे भरोसा ही नहीं कि होते हैं। बैसाखी भी गिर गयी और पैर तो होते ही नहीं। नीत्शे गिर पड़ा, खंडहर हो गया। झूठ के साथ खुद ही खंडहर हो गया। . फिर सौ साल में नीत्शे के पीछे जो हुआ, वह सोचने जैसा है। जिन-जिन समाजों ने नीत्शे की बात मान लीं, वहां-वहां उपद्रव हआ। जैसे जर्मनी में नीत्शे की बात मान ली गयी कि कोई ईश्वर नहीं है. ईश्वर झठ है, तो जर्मनी ने हिटलर पैदा किया। आदमी को कोई तो चाहिए भरोसे के लिए। जीसस झूठे हो गये, ईश्वर झूठा हो गया, तो अडोल्फ हिटलर में भरोसा किया। अब यह बड़ा महंगा सौदा था। इससे जीसस बेहतर थे, जीसस में भरोसा बेहतर था। लेकिन आदमी बिना भरोसे के नहीं रह सकता। तो जगह खाली हो गयी, 'वैक्यूम' हो गया, उसमें अडोल्फ हिटलर पैदा हो गया। और लोग तो चाहते थे, कोई किसी के चरण पकड़ लें। लोग तो चाहते थे, कोई सहारा मिल जाये-अडोल्फ हिटलर उनका मसीहा हो गया। वह उन्हें गहन विध्वंस में ले गया। ___ मार्क्स ने कह दिया कि कोई धर्म नहीं है, धर्म अफीम का नशा है। रूस में मार्क्स की बात मानी गयी, जो परिणाम हुआ वह यह कि राज्य, 'स्टेट' ईश्वर हो गयी। राज्य सब कुछ हो गया। अब सब नमन कर रहे हैं राज्य के सामने। स्टैलिन बैठ गया सिंहासन पर। ईश्वर तो हटा, ईश्वर की जगह स्टैलिन आ गया। इससे तो ईश्वर बेहतर था, कम-से-कम धारणा में कुछ सौंदर्य तो था; कुछ लालित्य तो था। कम-से-कम धारणा में कुछ ऊंचाई तो थी, कुछ खुला आकाश तो था, कहीं जाने की संभावना तो थी, विकास का उपाय तो था! स्टैलिन! मगर आदमी खाली नहीं रह सकता। आदमी को कुछ चाहिए।
प्रिया से मैं कहना चाहता हूं : इस घड़ी में तुझे लगेगा कि कुछ सहारा पकड़ लो, कुछ भी सच मान लो। जल्दी मत करना। सच है! तुम झूठ को गिर जाने दो और प्रतीक्षा करो, सच उतरेगा। सच नहीं है—ऐसा नहीं। सच है। सच ही है, और सब तरफ मौजूद है। तुम जरा झूठ को हट जाने दो और तुम्हारे भीतर जो खाली रिक्त आकाश बनेगा, उसी में चारों तरफ से दौड़ पड़ेंगी धारायें सच की। तुम
आलसी शिरोमणि हो रहो
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