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संसार में तो हमारे ऐसे लगाव हैं कि मरते दम तक नहीं छूटते। मरता-मरता आदमी भी नहीं छोड़ता है।
मैंने सुना, एक सेठ नदी में डूब रहा था। एक गरीब भिखमंगे ने दौड़ कर बचाया। कठिन था बचाना, क्योंकि सेठ भारी-वजनी था। बड़ा पेट, बड़ा सेठ! गरीब भिखमंगा, हड्डी-पसली सूखी; मगर किसी तरह खींच कर लाया। उनको बचाने में अपनी भी जान दांव पर लगा दी। सेठ ने जब आंखें खोली, थोड़ा होश संभाला, तो एक रुपये का नोट दिया उसे और कहा, तूने मुझे बचाया, यह रुपया ले, किसी दूकान से जा कर भुना ला; आठ आने तू रख लेना, आठ आना मुझको दे देना। उस भिखमंगे ने कहा, सेठ, यहां तो कोई आसपास दूकान दिखाई नहीं पड़ती और अब आठ आने के पीछे क्या पंचायत करनी? आप संभाल कर रखो। जब दुबारा डूबो तब पूरा नोट ही दे देना। ___आदमी मरते दम तक भी पकड़ता है, छोड़ता नहीं। स्वाभाविक है एक अर्थ में, क्योंकि जिसमें हम मूल्य मानते हैं, उसको पकड़ते हैं। हमारा सारा मूल्य धन में है, पद में है, प्रतिष्ठा में है; चूंकि हमने मूल्य सब वहां रख दिया। हमारा परमात्मा धन में है तो हम धन को पकड़ते हैं। हमारा परमात्मा पद में है तो हम पद को पकड़ते हैं। जहां तुमने परमात्मा को मान लिया, उसी को तुम पकड़ते हो। तुमने संसार में परमात्मा को मान लिया। परमात्मा यानी सुख।। __ तुमने यह परिभाषा तो बहुत सुनी कि लोग कहते हैं, ब्रह्म जो है, परमात्मा जो है वह सच्चिदानंदरूप, आनंद-रूप है। लेकिन तुम उल्टी तरफ से भी सोचो। जहां तुम आनंद मान लेते हो वहीं तुम्हें परमात्मा के दर्शन होने लगते हैं। धन में मान लिया तो धन में होने लगे। फिर तुम धन के दीवाने हो जाते हो। फिर तुम धन की पूजा करते हो। देखते न दीवाली आती है तो लोग धन की पूजा करते हैं! धन का उपयोग तक भी ठीक था; कम से कम पूजा तो मत करो। कहते हैं लक्ष्मी-पूजा कर रहे हैं। धन की पूजा! इसका अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ हुआ कि धन परमात्मा हो गया। अब तो धन की पूजा भी हो रही है! धन का उपयोग करते; धन साधन था, उपयोगी था। मैं यह नहीं कहता कि धन उपयोगी नहीं है। धन बड़ा उपयोगी है; विनिमय का माध्यम है; हजार सुविधाएं उससे आती हैं। लेकिन पूजा! तो तुमने फिर धन में परमात्मा को देखना शुरू कर दिया। फिर तो रुपया जो है रुपया न रहा, प्रभु की प्रतिमा हो गयी। अब तुम इसकी पूजा कर रहे, इसको नमन कर रहे हो।
लोग जिस चीज को नमन करें, खयाल करना कि वहीं उनका परमात्मा है। राजनेता गांव में आ जाये तो लाखों लोग इकट्ठे हो जाते हैं। यह नमन किसलिए हो रहा है? पद में पूजा है। पद में परमात्मा दिखाई पडता है। जिसके पास ताकत है....। यही राजनेता कल पद पर न रह जाएगा तो स्टेश
कत्ते भी नहीं जाते। आदमी की तो बात छोडो, खद का कत्ता भी पंछ नहीं हिलाएगा कि छोडो भी; जब थे तब थे! और लोग सलाह देने आते हैं : अब छोड़ो भी अकड़! रस्सी जल गयी, अकड़ रह गयी। अब है ही क्या पास में? लेकिन अगर राजनेता पद पर है, या संभावना भी हो कि कल पद पर हो सकता है, तो भीड़ इकट्ठी हो जाती है।
तुम्हारा परमात्मा पद में है।
बुद्ध एक गांव में आए। उस गांव के राजा से उस गांव के मंत्री ने कहा कि बुद्ध आते हैं, हम उनके स्वागत को चलें। राजा अकड़ीला था। उसने कहा, हम क्यों जाएं? है क्या बुद्ध के पास?
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4