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वहां जो घटता है, उसे देखो गौर सेः नदी नमस्कार कर रही है सागर को; सागर में लीन हुई जा रही है। अगर नमस्कार के बाद तुम बच रहे तो नमस्कार नहीं। तो तुमने धोखा कर दिया। तो तुमने औपचारिक जय राम जी कर ली। तुम डूबे नहीं, तुम मिटे नहीं। नमस्कार के बाद बचोगे कैसे? ।
भट्टो जी दीक्षित बंगाल के एक बहुत अदभुत व्याकरणाचार्य हुए हैं। वे साठ वर्ष के हो गये। उनके पिता उन्हें बार-बार कहते कि तू व्याकरण में ही उलझा रहेगा? अरे, अब मंदिर जा, अब प्रभु को नमस्कार कर, पुकार प्रभु को! अब तू भी बूढ़ा होने लगा। बाप तो कोई अस्सी साल के हो गये थे। लेकिन यह बेटा सुनता न था। यह सुन लेता, हंस लेता, टाल जाता। लेकिन एक दिन बाप ने कहा कि सुन, अब मुझे लगता है कि मेरी आखिरी घड़ी करीब आ रही है। और मेरे मन में एक दुख रह जाएगा कि तू मेरे देखते-देखते कभी मंदिर न गया, तूने कभी प्रभु का स्मरण न किया। छोड़ यह बकवास, यह व्याकरण में क्या रखा है? इस लिखने-पढ़ने में क्या धरा है ? तू प्रभु को तो याद कर! __ भट्टो जी दीक्षित ने कहा कि अब आप मानते नहीं तो मुझे आपसे कहना पड़े। आपको मैं भी देख रहा हूं वर्षों से मंदिर जाते, लेकिन मैंने अभी तक देखा नहीं कि आपने नमस्कार किया हो। क्योंकि आप रोज वैसे के वैसे वापिस लौट आते हैं। नमस्कार के बाद कोई वापिस लौटता है? वैसा का वैसा वापिस लौटता है? पहले तो वापिस ही नहीं लौटना चाहिए, अगर नमस्कार हो गया है। और अगर लौटे भी तो कुछ दूसरा होकर लौटना चाहिए। चालीस-पचास साल से तो मुझे भी याद है, जब से मैंने होश संभाला है, आपको देख रहा हूं सुबह-शाम मंदिर जाते; मगर कोई क्रांति की किरण नहीं दिखी। तो मैंने सोचा, ऐसा नमस्कार करके मैं भी क्या कर लूंगा? मेरे पिता कुछ न कर पाये तो मैं क्या कर लंगा? जाऊंगा एक दिन. लेकिन तमसे कहे देता हं. बस एक बार याद करूंगा। और आप तो जानते हैं. मैं व्याकरण के पीछे पागल हं। तो उसने कहा कि राम-राम क्या कहना. एक बार रामाः बहुवचन कह देंगे, खतम हुआ। बार-बार राम-राम, राम-राम कहते रहना, जिंदगी भर एकवचन कहने से क्या सार है ? बहुवचन में ही एक दफा कह देंगे। समझ लेगा समझ लेगा; नहीं समझा, बात खतम हो गयी। दुबारा कुछ कहने को बचा नहीं।
और कहते हैं, वह गया और एक बार रामाः कहा और वहीं गिर गया। उड़ गये प्राण-पखेरू। घड़ी भर बाद लोगों ने आ कर घर खबर दी पिता को कि आप क्या बैठे कर रहे हैं, आपका बेटा तो जा चुका। सारा गांव इकट्ठा हो गया कि जो कभी मंदिर में न आया था, एक बार आ कर राम को एक बार पुकार कर अनंत यात्रा पर निकल गया! मामला क्या हुआ?
पिता रोने लगे। पिता ने कहा, वह ठीक ही कहता था कि एक ही बार कहूंगा, लेकिन प्राण-पण से कह दूंगा। पूरा-पूरा कह दूंगा, सब लगा कर कह दूंगा। ऐसा रत्ती-रत्ती, रोज-रोज दोहराना-क्या सार है! _ और अक्सर ऐसा होता है कि रोज-रोज दोहराने से, रत्ती-रत्ती दोहराने से तुम्हारी दोहराने की आदत हो जाती है। तुम यंत्रवत दोहराये चले जाते हो। लोग बिलकुल यंत्रवत झुकते हैं; मंदिर देखा, झुक गये। इसमें कुछ भी अर्थ नहीं है। कोई प्रयोजन नहीं है। बचपन से बंधी एक यांत्रिक आदत है: हिंदू-मंदिर आ गया, झुक गये; जैन-मंदिर आ गया; झुक गये।
मैं एक यात्रा पर था। और एक दिगंबर जैन महिला मेरे साथ यात्रा पर थी। उसने कसम खा रखी
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4