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________________ कहा : पागल हो गये हैं आप ? बुढ़ापे में दिमाग खराब हुआ है ! जिंदगी हो गयी पूजा करते, हमारे बाप-दादे भी करते रहे, उनके बाप-दादे भी यही करते थे; सदियों पुराना यह मंदिर है, कभी परमात्मा आया नहीं। और आज अचानक बिना किसी कारण के, अकारण ! लेकिन फिर वे भी चिंतित हुए। तो बड़े पुजारी ने कहा, अब तुम सोच लो; फिर जिम्मेवारी तुम्हारी रही। अगर आ जाए तो मुझे जिम्मेवार मत ठहराना। तब वे भी डरे । उन्होंने कहा, हर्ज भी क्या है, हम तैयारी कर लें । न आया तो चलेगा। मंदिर साफ-सुथरा हो जायेगा। और भोग जो हम बनाएंगे, जैसा रोज हम बनाते हैं, आज भी बना लें। लगायेंगे तो हम ही। आने वाला तो कोई है नहीं। तो ठीक है, चलो, एक उत्सव हो जायेगा। उन्होंने सारा मंदिर घिसा, सारा मंदिर साफ किया । धूप-दीप जलाये; इत्र छिड़का, फूल सजा, जानते हुए कि कोई आ नहीं रहा है, अच्छा पागलपन कर रहे हैं! जानते हुए कि यह सब मजाक हुई जा रही है एक सपने के पीछे। सांझ हो गई। उसके आने का कोई पता नहीं है। रात भी होने लगी। फिर तो वे कहने लगे कि हम भी बिलकुल पागल हैं; सपने के पीछे दिन भर मेहनत करते-करते बिलकुल थक गये; अब भोग लगा लें और सो जाएं। तो उन्होंने खूब भोजन कर लिया। दिन भर के थके-मांदे खूब भोजन कर लिया। स्वादिष्ट और गरिष्ठ भोजन बनाया था। फिर पड़ गये गहरी नींद में। रात परमात्मा आया। उसका रथ । गड़गड़ाहट की आवाज । एक पुजारी ने नींद में सुना कि गड़गड़ाहट की आवाज है, जैसे रथ के पहिये हों। उसने कहा, सुनो, लगता है कि कोई आया है; रथ की गड़गड़ाहट है। लेकिन दूसरे पुजारी ने कहा, बंद करो यह बकवास ! एक के सपने के पीछे दिन भर परेशान हुए, अब तुम्हें सपना आ रहा है! कोई गड़गड़ाहट नहीं, आकाश में बादल गरजते हैं। फिर वे सो गये । फिर द्वार पर रथ आ कर रुका। वह उतरा; सीढ़ियां चढ़ा। उसने दरवाजे पर दस्तक दी। फिर किसी पुजारी को स्वप्न में ऐसा लगा कि कोई दस्तक दे रहा है। उसने फिर कहा कि सुनो भाई, लगता है कि कोई दस्तक दे रहा है। तब तो फिर बड़ा पुजारी भी चिल्लाया कि हर चीज की सीमा होती है। यद्यपि मैंने ही यह नासमझी शुरू की; लेकिन अब सोने भी दो । कोई कहता है, रथ गड़गड़ा रहा है; कोई कहता है कि द्वार पर दस्तक दी। कुछ नहीं, हवा का झोंका है। सो जाओ चुपचाप । सुबह जब वे उठे, द्वार पर जब वे गये, रथ आया था, रथ के चिह्न थे। कोई सीढ़ियां चढ़ा था; किसी के पैरों के चिह्न थे। किसी ने द्वार पर दस्तक दी थी; किसी के हाथ की छाप थी। तब वे बहुत रोने लगे । रवींद्रनाथ की कविता का शीर्षक है: अवसर चूक गया। शायद प्रभु आता भी है। यह कविता कविता नहीं है, गहरी सूझ है इसमें। लेकिन तुम कुछ व्याख्या कर लेते हो। तुम्हारा मन कुछ व्याख्या कर लेता है। तुम्हारा मन तुम्हें कुछ उत्तर दे देता है । तुम इतने भरे हो, तुम्हारे भीतर इतने विचारों का जाल है कि उस जाल को पार करके कोई सत्य तुम तक पहुंच नहीं पाता है। इसलिए मैं कहता हूं ध्यान । ध्यान का कुछ और अर्थ नहीं है। ध्यान का इ ही अर्थ है : तुम जरा विचार को शिथिल करो; तुम अपनी व्याख्याएं जरा छोड़ो; तुम अपनी धारणाओं को बहुत मूल्य मत दो; तुम जरा द्वार खोलो, कपाट खोलो मंदिर के; तुम मंदिर के द्वार पर बैठो, राह देखो, प्रतीक्षा करो। इतना ही काफी है कि तुम खाली आंख देखो ताकि वह आए तो तुम पहचान लो । परमात्मा हमारा स्वभावसिद्ध अधिकार है 257
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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