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________________ एकदम अर्थ साफ भी न हो कि क्या अर्थ है। धीरे-धीरे अर्थ साफ होगा। अर्थ साफ अगर न हो, तो उसका इतना ही अर्थ है कि तुमने अपने को इस भांति झुठला लिया है कि अब तुम्हें अपने सपने का अर्थ भी साफ नहीं दिखाई पड़ता । तुम्हारी आंखें इतनी विकृत हो गयी हैं। मगर लिखते जाना। धीरे-धीरे सफाई होगी। धीरे-धीरे बिंब और उभरकर आएंगे। और अगर तुम सपनों को धीरे-धीरे समझने लगो तो तुम्हारा अपने व्यक्तित्व के संबंध में बोध गहन हो जाएगा। सपने को समझते-समझते एक ऐसी स्थिति आ सकती है कि तुम सपने में भी थोड़ा सा होश रख सको कि यह सपना चल रहा है। जिस दिन यह होश आ जाता है कि यह सपना चल रहा है, उसी दिन सपने बंद हो जाते हैं। और सपने का बंद हो जाना बड़ी क्रांति है। सपने जिसके बंद हो गये, गलितधी, उसकी बुद्धि गल गयी। फिर रात जिसके सपने बंद हो जाते हैं, उसके दिन में विचार बंद हो जाते हैं। जड़ें कट गयीं। दिन के विचार तो पत्तों जैसे हैं; रात के सपने जड़ों जैसे हैं। जब सपने और विचार दोनों खो जाते हैं, तब जो है वही सत्य है । यह ठीक ही हुआ जो तुम्हें उत्तर मिला कि हां, भ्रम ही है। यह उत्तर बड़ी गहराई से आया है। मेरी सलाह है— पूछा है देव निरंजन ने मेरी सलाह है, तुम इस प्रयोग को जारी रखो। तुम चित्र पर तीस मिनट रोज ध्यान जारी रखो। तुम्हारा अचेतन तुमसे बोला है। तुम्हारे हाथ अचानक एक कुंजी लग गयी है। इसको ऐसे ही गंवा मत देना। और बहुत कुछ अचेतन तुमसे बोलेगा। और धीरे-धीरे तुम कुशल हो जाओगे समझने में अचेतन की भाषा । और वह कुशलता अध्यात्म के मार्ग पर बड़ा सहारा है, बड़ा संहयोग है। इतना ही तुमसे कहना चाहता हूं कि जो अंतिम चरण है तुम्हारे इस स्वप्न का - इसको मैं स्वप्न ही कह रहा हूं; तुमने जागते-जागते देखा है तो भी स्वप्न ही कह रहा हूं—वह बहुत महत्वपूर्ण है। मैंने सुना है, जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रों में अकबर-बीरबल के किस्से बहुत प्रसिद्ध हैं, वैसे ही आंध्र प्रदेश में विश्वनाथ सत्यनारायण को ले कर ऐसी ही कहानियां चल पड़ी हैं। तेलगु के एक बड़े लेखक ने अपनी वृहत आकार की पुस्तक विश्वनाथ सत्यनारायण को समर्पित की है। उन्होंने पुस्तक को इधर से उधर देखा और कहा : बहुत मामूली पुस्तक है। लेखक उदास मन अपने घर लौटा। उसने सत्यनारायण के विचार अपनी पत्नी को सुनाये । पत्नी ने पूछाः सत्यनारायण ने तुम्हारी पुस्तक का अवलोकन कितनी देर तक किया ? लेखक ने बताया : पांच-छः मिनट । पत्नी ने कहा : तुम्हारी पुस्तक निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है । जिस पुस्तक की निरर्थकता को समझने में सत्यनारायण को पांच-छः मिनट लगे, वह पुस्तक साधारण नहीं हो सकती । जिस स्वप्न के पीछे यह उत्तर आया कि यह सब भ्रम है, वह सपना साधारण नहीं है, अ है। क्योंकि यह सत्य की घोषणा है । जिस स्वप्न ने अपने को स्वप्न कह दिया है, वह सपना बड़ा संदेश लेकर आया है। उससे तुम्हें कुछ मार्गनिर्देश मिला है। अब तुम रोज इसको ध्यान ही बना लो। रोज-रोज गहराई बढ़ेगी। रोज-रोज नये तल खुलेंगे। कभी-कभी ऐसा होता है कि आकस्मिक रूप से ध्यान की कोई विधि हाथ लग जाती है। और जो विधि आकस्मिक रूप से तुम्हारे हाथ लग जाती है, वह ज्यादा कारगर है। क्योंकि उससे तुम्हारे स्वभाव का ज्यादा तालमेल है। वह तुमने ही खोज ली है। जो विधि कोई बाहर से देता है वह बैठे न साक्षी, ताओ और तथाता 237
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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