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________________ कहानी है कि ईश्वर ने कहा कि ज्ञान के वृक्ष के फल मत खाना - अदम को । और अदम ने खाये । वह हर बच्चे की कहानी है। यह कहानी बड़ी सच है। यह हर अदम की कहानी है। यह आदमी मात्र की कहानी है। तुम अपनी तरफ गौर से देखो, तुमने वे ही फल चखे जो इंकार किये गये थे। जहां-जहां लगी थी तख्ती, ‘भीतर आना मना है', वहां-वहां तुम गये। तुमने हर तरह की जोखिम उठायी और तुम गये। जाना ही पड़ा। क्योंकि बिना जोखिम उठाये तुम्हारा अहंकार कैसे निर्मित होता ? अगर तुम 'हां' ही 'हां' कहते चले जाओ, अगर तुम आज्ञाकारी ही बने रहो, तो अहंकार कैसे निर्मित होगा ? अहंकार का मजा है। भटकने में मजा है। तुम ईश्वर से मिलना नहीं चाहते, क्योंकि मिलने का मतलब तो लीन हो जाना होगा। तुम डरते हो। तुम कहते जरूर हो, 'कब तक भटकता रहूंगा ?' पूछते हो कि कोई रास्ता है ? वह शायद इसीलिए पूछ रहे हो कि रास्ता अगर पक्का पता चल जाये तो उस रास्ते पर कभी न जाएं। कहीं ऐसा न हो कि भूले-भटके, हम तो सोच रहे हों भटक रहे हैं, और चले जा रहे हैं उसी की तरफ ! रवींद्रनाथ की एक कहानी है, गीत है, कि मैं खोजता था परमात्मा को जन्मों-जन्मों से, बहुत जगह-जगह खोजा, हर जगह खोजा और वह न मिला। हां, कभी-कभी उसकी झलक मिलती थी। बहुत दूर किसी तारे के किनारे से गुजरता हुआ दिखाई पड़ता उसका रथ, कभी सूरज की किरणों के रथ पर सवार, कभी चांद के पास, कभी तारों के पास; मगर सदा दूर, पास कभी नहीं । और जब तक मैं उस तारे के पास पहुंचता खोजता - खोजता, मुझे जन्मों लग जाते, जब तक मैं वहां पहुंचता तब तक वह वहां से जा चुका होता। फिर कहीं दूर। ऐसा खेल चलता रहा; ऐसी छिया-छी चलती रही। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि अंततः मैं जीता। मेरी विजय यात्रा पूरी हुई। मैं उसके द्वार पर पहुंच गया जहां तख्ती लगी थी कि परमात्मा का भवन आ गया। सीढ़ियां चढ़ गया खुशी में । कुंडी हाथ में लेकर खटकाने ही जा रहा था कि एक विचार मन में उठा कि अगर वह मिल गया तो फिर क्या करोगे ? अब तक तो खोज ही सहारा थी; खोज के सहारे ही जीते थे । वही एक मजा था, वही एक धुन थी । अगर मिल ही गया, फिर क्या करोगे ? थोड़ा सोच लो । क्योंकि फिर करने को कुछ भी न बचेगा । अब तक करना यही तो था कि परमात्मा को खोजना था। फिर परमात्मा मिल गया तो अब क्या करोगे ? I तो रवींद्रनाथ ने उस गीत में कहा है कि मैंने आहिस्ता से सांकल छोड़ दी कि कहीं आवाज न हो जाये। डर के कारण अपने जूते पैर से निकाल लिये कि कहीं सीढ़ियों पर पगध्वनि न हो जाये । और फिर मैं जो भागा हूं, तो मैंने पीछे लौट कर नहीं देखा। और अब मुझे पता है कि उसका घर कहां है। बस वहां छोड़ कर सब जगह खोजता हूं। तुम्हारे कर्ता होने का मजा समाप्त हो जायेगा जिस क्षण प्रभु से मिलन हुआ। क्योंकि प्रभु मिलन का अर्थ है : महामृत्यु | इस शब्द को तुम खयाल में ले लो तो तुम्हें समझ में आ जाएगा क्यों भटके हुए हो। अगर भटकने में अहंकार है तो मिलने में मौत है। क्योंकि यह अहंकार जाएगा; समर्पण करना होगा। इसे रख देना होगा उसके चरणों में। धोखे न चलेंगे वहां कि कुछ फूल-पत्ते तोड़ लाये और चढ़ा दिये पैरों पर । नहीं, अपने को ही तोड़ कर चढ़ाना होगा। अपना ही फूल चढ़ाना होगा। यह अहंकार तुम्हारा फूल है । यह अस्मिता तुम्हारा फूल है। ऐसे बाजार से खरीदे गये फूल-पत्ते न चलेंगे। और दूसरों की बगिया से तोड़ लाये, ये न चलेंगे। तुम्हीं को चढ़ाना होगा अपने को । साक्षी, ताओ और तथाता 229
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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