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________________ पकड़ना है ! बच्चे रोते हैं कि मां, चांद को पकड़ा दे। शुरू से ही हम दूर की यात्रा पर निकल जाते हैं। क्योंकि आंख हमारी जैसे ही खुली, जो दूर है वह दिखाई पड़ जाता है । और आंख बंद करने का तो हमें स्मरण ही नहीं है । जब आंख बंद करते हैं तो हम नींद में सो जाते हैं। आंख खुली तो दौड़-धूप, आपाधापी; आंख बंद तो सो गये। इन्हीं दो के बीच जीवन चल रहा है। आंख कभी बंद करके जागे रहो तो ध्यान हो जाये। आंख तो बंद हो और जागरण न खोये, तो ध्यान हो जाये । ध्यान का और अर्थ क्या है ! इतना ही अर्थ है कि थोड़ा-सा जागरण से ले लो और थोड़ा-सा नींद से ले लो - दोनों से मिल कर ध्यान बन जाता है। जागरण से जागरण ले लो और नींद से शांति ले लो, सन्नाटा ले लो, शून्यता ले लो; दोनों को मिला लो, पक गयी रोटी तुम्हारी। अंब तुम तृप्त हो सकोगे। पूछते हो, 'मैं कब तक भटकता रहूंगा ?' जब तक तुम्हारी मर्जी! भटकना चाहते हो तो कोई उपाय नहीं है। भटकने में मजा रहे हो, तब तो फिर कोई बात ही क्या उठानी ? भटकने में मजा भी है थोड़ा। मजा है इस बात का .:. । तुमने खयाल किया ? जैसे ही बच्चा थोड़ा बड़ा होता है, वह मां-बाप की बात को इंकार करने लगता है। वह कहता है: नहीं, नहीं करेंगे। मां-बाप कहते हैं, सिगरेट मत पीयो; वह कहता है, पी कर रहेंगे, दिखा कर रहेंगे। मां-बाप कहते हैं, सिनेमा मत जाओ; वह जरूर जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन का एक बगीचा है। उसमें सेव और नासपातियां और अमरूद इतने लगते हैं कि वह बेच भी नहीं पाता। क्योंकि गांव में उतने खरीददार भी नहीं हैं। सड़ जाते हैं वृक्षों पर, या खुद मोहल्ले - पड़ोस में मुफ्त बांट देता है । एक दिन मैंने देखा कि पांच-सात बच्चे उसके बगीचे में घुस गये हैं और वह उनके पीछे गाली देता हुआ और बंदूक लिये दौड़ रहा है। मैंने कहा कि नसरुद्दीन, तुम वैसे ही इतने फलों का कुछ उपयोग नहीं कर पाते, न कोई खरीददार है, न तुम्हें जरूरत है बेचने की, तुम बांटते हो; इन बच्चों ने अगर दो-चार - दस फल तोड़ भी लिये तो ऐसी क्या परेशानी ? बंदूक ले कर कहां दौड़े जा रहे हो ? उसने कहा, अगर बंदूक ले कर न दौडूंगा तो ये दुबारा फिर आएंगे ही नहीं । यह तो निमंत्रण है। बंदूक ले कर दौड़ता हूं; तुम कल देखना। आज पांच-सात हैं, कल चौदह-पंद्रह होंगे। कल तो मैं हवाई फायर भी करूंगा। फिर ये पूरे स्कूल को ले आएंगे। छोटा बच्चा भी, जहां नहीं जाना चाहिए, वहां जाने में आतुर हो जाता है; जो नहीं करना चाहिए उसे करने में उत्सुक हो जाता है। भटकने में कुछ मजा है। समझो। भटकने में मजा है अहंकार का । भटकने पर ही पता चलता है कि मैं हूं; नहीं तो पता कैसे चले ? अगर तुम हमेशा 'हां' कहो तो तुम्हें अपने अहंकार का पता कैसे चले ? 'नहीं' कहने से अहंकार के चारों तरफ रेखा बनती है। तो जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है, वह नहीं कहने लगता है। वह कहता है नहीं, ये तो माता-पिता मुझे लील ही जाएंगे। ये कहें बैठो तो बैठ जाऊं, ये कहें खड़े हो तो खड़ा हो जाऊं - तो फिर मैं कहां हूं? तो फिर मैं कौन हूं? तो फिर मेरी परिभाषा क्या है? उसकी परिभाषा बनाता है वह इंकार करके। सिगरेट न पीओ, पिता कहता है; वह कहता है ठीक, इसीलिए पीता है। पी कर दिखा देता है दुनिया को कि मैं हूं, मेरा होना है ! मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हर बच्चे को अपने अहंकार की तलाश है। इसलिए ईसाइयों की पहली 228 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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