________________
सिसकती होगी अकेली तान डबडबायी आंख में घुल गया होगा छोह खंडहर-सी याद की पुर गयी होगी सांवली मिट्टी तहा कर खोह जोड़ आये थे जिन्हें हम नाम से पुल हुए होंगे अचीन्हें बाण तोड़ आये थे जहां हम बांसुरी
सिसकती होगी अकेली तान। वे तोड़ी बांसुरियां हैं अतीत की, लेकिन तुम्हें लगता है, अब भी वहां स्वर सिसकता होगा। वहां कुछ भी नहीं है।
झेन फकीर रिझाई अपने गुरु के पास पहुंचा तो गुरु ने जो उससे पहली बात पूछी, उसने पूछा: तू किस गांव से आता है? तो रिझाई ने अपने गांव का नाम दिया कि फला-फलां गांव से आता हूं। उसके गुरु ने पूछा : वहां चावल के दाम कितने हैं? रिझाई हंसा और उसने कहा ः जिसे मैं पीछे छोड़ आया पीछे छोड़ आया, और जो अभी आया नहीं, आया नहीं; मुझसे अभी की बात करो। गुरु हंसने लगा। उसने कहा : तूने ठीक किया। अगर तू चावल के दाम बता देता, निकाल तुझे आश्रम के बाहर कर देता। ऐसे आदमी की क्या जरूरत? जिस गांव को छोड़ आया, वहां चावल के क्या दाम हैं, उनकी याद रखे हुए है! बात गयी सो गयी, हुई सो हुई। ____ हमें पुल तोड़ देने चाहिए। हमें अतीत की सिसकती हुई बांसुरियों के स्वर नहीं ढोने चाहिए। और न ही हमें भविष्य के अजन्मे का आग्रह रखना चाहिए। जो है, है। जो है वह भी, और जो नहीं है वह भी। जो उपस्थित है वह भी और जो अनुपस्थित है वह भी।
ज्ञानी जो है उसे भोग लेता है; जो नहीं है, उसे भी भोग लेता है। बात के कहने का कुल इतना ही अर्थ है कि ज्ञानी भोगता और अज्ञानी सिर्फ रोता-झीखता है। यह तुम्हें बड़ी उल्टी लगेगी बात। तुम तो साधारणतः सोचते होः अज्ञानी का नाम भोगी और ज्ञानी का नाम त्यागी। मैं तुमसे कहना चाहता हूं: ज्ञानी ही असली भोगी है। अज्ञानी कहां भोग पाता! उसको क्यों व्यर्थ भोगी कहे चले जाते हो? भोग की आशा है; भोगा कहां है ?
उपनिषद कहते हैं : तेन त्यक्तेन भुंजीथाः। उन्होंने ही भोगा जिन्होंने छोड़ा; उन्होंने ही भोगा जिन्होंने त्यागा। महावीर ने भोगा; बुद्ध ने भोगा; अष्टावक्र ने भोगा; मुहम्मद ने भोगा; जरथुस्त्र ने भोगा।
को तम भोगी कहते हो उनको तो कपा करो, मत कहो भोगी। कहां भोग है? जीवन में कोई तो रस नहीं है। सब रेगिस्तान है। सब सूखा-सूखा है। कहीं तो कोई हरियाली नहीं है। कहीं तो कोई गान नहीं। वीणा छिड़ती कहां है? राग उठता कहां है? नाच कहां है? आंसू ही आंसू हैं। इनको तुम भोगी कहते हो?
रामकृष्ण के पास एक आदमी आया और उसने उनके सामने हजारों रुपये की ढेरी लगा दी और कहाः यह आप स्वीकार कर लें। रामकृष्ण ने कहा : बड़ी मुश्किल है। मैं स्वीकार न कर सकूँगा। तू ऐसा कर, इन्हें गंगा में फेंक आ। उस आदमी ने कहा ः आप महात्यागी! रामकृष्ण ने कहा : यह झूठ
218
अष्टावक्र: महागीता भाग-4