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सफेद कपड़े पर जरा-सा दाग भी दिखाई पड़ता है, काले कपड़े पर तो नहीं दिखाई पड़ता है। दाग तो काले पर भी पड़ता है, लेकिन दिखाई नहीं पड़ता। ___ तुम्हारे जीवन में तो इतना दुख ही दुख है कि तुम काले हो गये हो दुख से। छोटे-मोटे दुख तो तुम्हें पता ही नहीं चलते। तुमने एक बात अनुभव की? अगर छोटे दुख से मुक्त होना हो तो बड़ा दुख पैदा कर लो, छोटा पता नहीं चलता। जैसे तुम्हारे सिर में दर्द हो रहा है और कोई कह दे कि 'क्या बैठे, सिरदर्द लिए बैठे हो? अरे. दकान में आग लग गई।' भागे. भल गये दर्द-वर्द। सिर का दर्द गया। एस्प्रो की जरूरत न पड़ी। दूकान में आग लग गई, यह कोई वक्त है सिरदर्द करने का! भूल ही जाओगे। ____ बर्नार्ड शा ने लिखा है कि उसको हार्ट अटैक का हृदय पर दौरा पड़ा, ऐसा खयाल हुआ तो घबरा गया। डाक्टर को तत्क्षण फोन किया और लेट गया बिस्तर पर। डाक्टर आया, सीढ़ियां चढ़ कर हांफता और आ कर कुर्सी पर बैठ कर उसने एकदम अपना हृदय पकड़ लिया। डाक्टर! डाक्टर ने
और कहा कि मरे, मरे, गये! घबड़ा कर बर्नार्ड शा उठ आया बिस्तर से। वह भूल ही गया वह जो खुद का हृदय का दौरा इत्यादि पड़ रहा था। भागा, पानी लाया, पंखा किया, पसीना पोंछा। वह भूल ही गया। पांच-सात मिनट के बाद जब डाक्टर स्वस्थ हुआ तो डाक्टर ने कहा, मेरी फीस। तो बर्नार्ड शा ने कहा, फीस मैं आपसे मांगूं कि आप मुझसे! डाक्टर ने कहा, यह तुम्हारा इलाज था। मैंने एक उलझन तुम्हारे लिए खड़ी कर दी, तुम भूल गये तुम्हारा दिल का दौरा इत्यादि। यह कुछ मामला न था; यह नाटक था, यह मजाक की थी डाक्टर ने और ठीक की।
बर्नार्ड शा बहुत लोगों से जिंदगी में मजाक करता रहा। इस डाक्टर ने ठीक मजाक की। बर्नार्ड शा बैठ कर हंसने लगा। उसने कहा ः यह भी खूब रही। सच बात है कि मैं भूल गया। ये पांच-सात मिनट मुझे याद ही न रही। वह कल्पना ही रही होगी।
बड़ा दुख पैदा हो जाये तो छोटा भूल जाता है। ऐसी घटनायें हैं, उल्लेख, रिकार्ड पर, वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर, कि कोई आदमी दस साल से लकवे से ग्रस्त पड़ा था और घर में आग लग
; भाग कर बाहर निकल आया। और दस साल से उठा भी न था बिस्तर से। जब बाहर आ गया निकल कर और लोगों ने देखा तो लोगों ने कहा किः 'अरे, यह क्या! यह हो नहीं सकता! तुम दस साल से लकवे से परेशान हो।' यह सुनते ही वह आदमी फिर नीचे गिर पड़ा। लेकिन चल कर तो आ गया था। तो लकवा भूल गया। ___ तुम्हारी अधिक बीमारियां तो सिर्फ इसीलिए बीमारियां हैं कि तुम्हें व्यस्त करने को और कुछ नहीं। छोटी-मोटी बीमारियां तो तुम्हारे खयाल में नहीं आती; बड़ी बीमारी व्यस्त कर लेती है। घर में आग लगी हैं तो लकवा भूल जाता है। कुछ और बड़ी बीमारी आ जाये तो घर में लगी आग भी भूल जाये।
बुद्धपुरुष को तो कोई उलझन नहीं है, कोई व्यस्तता नहीं है-कोरा चैतन्य है। जरा-सी भी सुई गिरेगी तो ऐसी आवाज होगी जैसे बैंड-बाजे बजे। संवेदना इतनी प्रखर है, उस संवेदना के अनुपात में ही बोध होगा! लेकिन फिर भी बुद्धपुरुष दुखी नहीं होता। दुख होता है, लेकिन दुखी नहीं होता। दुखी तो हम तब होते हैं जब दुख के साथ तादात्म्य कर लेते हैं। सिरदर्द हो रहा है, यह तो बुद्ध को भी पता चलता है; लेकिन मेरे सिर में दर्द हो रहा है, यह तुमको पता चलता है। सिर में दर्द हो रहा
खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं