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और न-चाह दोनों छोड़ कर देखो, तुम अचानक पाओगे सुख और दुख का भेद खो गया, उनमें कुछ भेद न रहा। उनकी सीमा-रेखा हमारी चाह बनाती है। इसे समझो।
कभी-कभी ऐसा होता है कि जिस चीज को तुम नहीं चाहते थे क्षण भर पहले तक, उसमें दुख था, और फिर तुम चाहने लगे तो उसी में सुख हो गया। जो आदमी सिगरेट नहीं पीता, उसको सिगरेट पिला दो-आंख में आंसू आ जाएंगे, खांसी उठेगी, घबरायेगा, चेहरा तमतमा जाएगा, सिगरेट फेंक देगा। कहेगा कि पागल हो गये हो, यह क्या भला-चंगा था और तुमने यह कहां का रोग लगा दिया! दुखी होता है। लेकिन उससे कहो कि धीरे-धीरे अभ्यास करो, यह बड़ा योगाभ्यास है; यह कोई ऐसे नहीं सधता, साधने से सधता है, और बड़ी कठिन बात है, तुम थोड़ा अभ्यास करोगे तो सध जायेगा। थोड़ा अभ्यास करेगा तो निश्चित सध जायेगा। सध क्या जायेगा, अभ्यास करने से वह जो अब तक शरीर के संवेदनशील तंतु विरोध किये थे, विरोध नहीं करेंगे। शरीर की संवेदनशीलता ने जो इंकार किया था, वह इंकार नहीं आएगा। शरीर राजी हो जाएगा कि ठीक है, तुम्हारी मर्जी, जो करना हो करो। खांसी नहीं उठेगी, आंख में आंसू नहीं आएंगे। और यह आदमी कहने लगेगा, अब सुख मिलने लगा।
तुमने शराब चखी? चखोगे तो तिक्त और कड़वी, स्वादहीन, लेकिन चखते ही चले जाओ तो सब स्वाद व्यर्थ हो जाते हैं, शराब का स्वाद ही फिर एकमात्र स्वाद रह जाता है।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे बहुत परेशान थी। रोज पी कर चला आए। एक दिन सब-समझा कर हार चुकी थी तो मधुशाला पहुंच गयी-सिर्फ डरवाने। मुल्ला भी घबराया, क्योंकि वह यहां कभी नहीं आयी थी। घर ही घर बात करती थी। आ गयी मधुशाला, आकर उसकी टेबल पर बैठ गई और कहाः आज तो मैंने भी तय किया कि मैं भी पीना शुरू करती हूं। तुम तो रुकते नहीं; मैं भी शुरू करती हूं। मुल्ला थोड़ा घबराया भी कि यह क्या मामला हो रहा है! एक ही पीने वाला घर में काफी है। अब उसको यह भी डर लगा कि कहीं यह भी पीने लगे तो जो बदतमीजी मैं इसके साथ करता रहा, वही बदतमीजी अब यह मेरे साथ करेगी। मगर अब कोई यह भी नहीं कह सकता कि मत पीओ, क्योंकि अब किस मुंह से कहे मत पीओ! यही तो पत्नी समझाती रही। ___ और इसके पहले कि वह कुछ कहे पत्नी ने अपनी गिलास में शराब ढाल ली। पहला ही चूंट लिया कि हाथ से गिलास पटक दिया और उसने कहा : अरे, यह तो जहर है! थू-थू किया। मुल्ला ने कहाः देखो! और तुम समझती थी कि मैं मजे लूट रहा हूं! हजार बार समझाया कि यह बड़ी कठिन चीज है। और तुम यही सोचती थी सदा कि मैं बड़े मजे लूट रहा हूं!
अभ्यास करो तो दुख सुख जैसा मालूम होने लगता है। चाह पैदा हो जाए तो दुख सुख हो जाता है। तुमने यह देखा? एक स्त्री को तुम चाहते; एक पुरुष को तुम चाहते-जब तक चाह है तब तक
है। विवाह कर लिया. दोनों साथ रह लिये: चाह क्षीण हो गयी। अब चाह तो खतम हो गयी। अब सुख नहीं मालूम पड़ता। तुमने किसी पति को किसी पत्नी के साथ सुखी देखा? अगर रास्ते से तुम देख लो कि पति-पत्नी दोनों सुख से चले जा रहे हैं तो समझ लेना कि ये पति-पत्नी नहीं हैं। ____ मैं एक ट्रेन में सवार था और एक महिला मेरे सामने ही सीट पर बैठी थी। हर स्टेशन पर एक
आदमी उससे मिलने आता–हर स्टेशन पर। फिर भाग कर अपने डब्बे में जाता, फिर आता। कभी शर्बत लाता, कभी कुछ। मैंने उससे पूछा कि तुम्हारे पति मालूम होते हैं। उसने कहा ः हां। मैंने पूछाः
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4