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________________ करोगे, रंग-रोगन तो करोगे! तौर-तरीका! __बड़ा प्यारा शब्द है तरीकत। इसका अर्थ है : जाओ, सदगुरु के चरणों में बैठो। सीखो उससेः कैसे बैठना, कैसे उठना? __ अर्जुन ने कृष्ण से पूछा है : मुझे बतायें प्रभु, स्थितिधी कैसे चलता? कैसे उठता? कैसे बैठता? कैसे बोलता? वह, जिसकी प्रज्ञा थिर हो गयी है, उसके उठने, बैठने, चलने का तौर-तरीका मुझे बतायें। तो मैं भी उस ढंग से उलूं, उस ढंग से बैलूं; थोड़ा उस मार्ग की व्यवस्था को समझू। अनुशासन, डिसिप्लिन। दूसरा है: शरीअत। शरीअत का अर्थ है तल्लीनता-जब साधक और साधना एक हो जाये। पहले में तो तरीका रहता है। और तुम जरा सावधानीपूर्वक तरीके का व्यवहार करते हो, क्योंकि अभी नये-नये हो। नया-नया टाइपराइटर चलाते हो या नयी-नयी कार सीखते हो, तो बड़ा हिसाब रखना पड़ता है। नयी कभी कार चलाना सीखा? तो कई चीजें एक साथ संभालनी पड़ती हैं। रास्ता भी देखो, स्टेअरिंग भी खयाल में रखो, ऐक्सीलरेटर पर भी पैर जमाये रखो, ब्रेक का भी ध्यान रखो। गेयर बदलना हो तो क्लिच को दबाना भी न भूल जाओ-सारी फिक्र! सिक्खड़ को बड़ी मुश्किल होती है। इतनी चीजें, अकेली जान! एक तरफ ध्यान देता है, दूसरा चूक जाता है। नीचे की तरफ देखता है तो रास्ता भूल जाता है, रास्ते की तरफ देखता है तो पैर ब्रेक से फिसल जाता है। ऐक्सीलरेटर ज्यादा दब जाता है, क्लिच लगाना भूल जाता है-यह सब होता है। लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे तुम पारंगत होते, कुशल होते, फिर...फिर तुम गपशप करते रहते, गाना गाते रहते, रेडिओ सुनते रहते और कार चलती रहती है। अब तौर-तरीका तौर-तरीका न रहा, अब तुम्हारे साथ तालमेल हो गया। अब तुम अलग नहीं हो। ___मनोवैज्ञानिक तो कहते हैं कि कभी-कभी ऐसी घड़ी आ जाती है रात में, तीन और चार के बीच, कि ड्राइवर को झपकी भी लग जाती है। क्षण भर को आंखें बंद हो जाती हैं, मगर गाड़ी चलती रहती है। उसी वक्त सबसे ज्यादा एक्सीडेंट होते हैं—तीन और चार के बीच। अगर रात भर कोई ड्राइवर गाड़ी चला रहा है तो सबसे ज्यादा खतरनाक समय तीन और चार के बीच है। क्योंकि उस वक्त सबसे ज्यादा गहरी नींद का समय है। उस वक्त कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि ड्राइवर सोचता है कि आंख खुली है और आंख बंद हो जाती हैं। ऐसा भी हो जाता है कि आंख बंद हो जाती हैं और मन धोखा देता है; रास्ता भी दिखाई देता है। वह सपना है रास्ते का! रास्ता अब है नहीं। और गाड़ी चलती रहती है। शराब पी कर भी ड्राइवर ठीक-ठीक चला लेता है। सच तो यह है कि अगर किसी ड्राइवर की परीक्षा लेनी हो कि ठीक-ठीक ड्राइवर है कि नहीं, तो पिला कर ही चलवा कर देख लेना। अगर पीकर भी चला ले तो ठीक ड्राइवर है। तो अब इसमें और इसकी ड्राइविंग में फासला नहीं रहा है। शरीअत का अर्थ होता है, अब अनुशासन अलग नहीं रह गया, खून में एक हो गया–हड्डी, मांस-मज्जा में समा गया। ऐसा नहीं है कि अब तुम्हें चेष्टा करके करना पड़ता है। अब तुमसे होता है। अब तुम न भी ध्यान दो तो भी वैसा ही होता है जैसा होना चाहिए। एक तो प्रार्थना है जो याद रख कर करनी पड़ती है। एक तो ब्रह्ममुहूर्त में उठना है कि अलार्म भरो तो उठ सकते हैं। फिर, एक घड़ी आती है जब ब्रह्ममुहूर्त का आनंद इतना लीन कर लेता है तुम्हें कि तु स्वयं मंदिर है 179
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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