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________________ और दौड़-धूप मत करो। अब इस खिलौने को और मत जमाओ; यह जमने वाला नहीं है। और परमात्मा के लिए अतृप्त जाओ। वहां अतृप्ति ही तृप्ति है। वहां प्यास ही प्यास का बुझ जाना है। वहां प्यास जितनी प्रबल होगी उतना ही सरोवर निकट आ जाता है। जिस दिन प्यास इतनी गहरी होती है कि प्यास ही बचती हैं, तुम नहीं बचते - उसी क्षण वर्षा हो जाती है। तुम जिस दिन सिर्फ एक लपट रह जाते हो, एक प्यास...। शेख फरीद एक नदी के किनारे बैठा था और एक आदमी ने उससे आकर पूछा कि परमात्मा को कैसे खोजें? फरीद ने उस आदमी की तरफ देखा । फरीद थोड़ा अजीब फकीर था। उसने कहा, मैं स्नान करने जा रहा हूं, तू भी स्नान कर ले। या तो स्नान के बाद तुझे बता देंगे, अगर मौका लग गया तो स्नान में ही बता देंगे। वह आदमी थोड़ा डरा भी स्नान में बता देंगे! यहां तक तो बात समझ में आती है कि स्नान के बाद बता देंगे — स्नान कर लो, फिर जिज्ञासा करना — मगर स्नान में बता देंगे! उसने सोचा कि फकीरों की बातें हैं, सधुक्कड़ी भाषा है, कुछ मतलब होगा । उतर पड़ा वह भी। फरीद तो मजबूत आदमी था। जैसे ही उसने नदी में डुबकी लगायी - उस आदमी ने फरीद ने उसकी गर्दन पानी के भीतर पकड़ ली और छोड़े न। वह आदमी बड़ी ताकत लगाने लगा। फरीद से बहुत कमजोर था, लेकिन एक ऐसा वक्त आया कि उसने इतनी जोर से ताकत लगायी कि वह फरीद के फंदे के बाहर हो गया। बाहर निकल कर तो वह आगबबूला हो गया। उसने कहा : हम आये ईश्वर को खोजने, आत्महत्या करने नहीं । तुम हमें मारे डालते हो ! फरीद ने कहा : यह बात पीछे, एक सवाल पूछना है। जब पानी में मैंने तुझे डुबा दिया, तो कितनी वासनाएं तेरे मन में थीं ? उसने कहा : कितनी वासनाएं एक ही वासना बची थी कि एक श्वास हवा किसी तरह मिल जाये। फिर तो वह भी खो गयी। फिर तो उसका भी होश न रहा । फिर तो मुझमें और मेरी श्वास को पाने की आंकांक्षा में भेद ही न रहा । मैं ही वही आकांक्षा हो गया । उसी वक्त तो मैं तुम्हारे पंजे के बाहर निकल पाया। फरीद ने कहा बस यह मेरा उत्तर है । जिस दिन परमात्मा को इस भांति चाहेगा कि चाहने वाले और चाह में भेद न रह जायेगा, उसी दिन मिलना हो जायेगा। अब तू जा । जब मैंने तुमसे कहा कि परमात्मा के लिए अतृप्ति, तो मेरा अर्थ है, संसार के लिए तृप्त हो जाओ, यहां तृप्ति मिलती नहीं है; परमात्मा के लिए अतृप्त हो जाओ, वहीं तृप्ति मिलती है। तू स्वयं मंदिर है प्यास गहरी ही स्वयं में तृप्ति है तृप्ति बाहर से कहीं आती नहीं । प्रश्न का उत्तर मिलेगा तब कि जब तुम पूछने में प्रश्न खुद बन जाओगे और वह संगीत जन्मेगा तभी गीत बन कर गीत जब तुम गाओगे 173
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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