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________________ फिर संयोग की बात, जब पहला बेटा मर गया, तो दूसरे बेटे को उन्होंने धीरे-धीरे धक्का दिया, उसको मिनिस्टर बनवा दिया। तब से वे दूसरे बेटे की बात करने लगे। तब से वह दूसरा बेटा भी सार्थक मालूम होने लगा। __तुम जिसके साथ अपना अहंकार जोड़ देते हो, बस उसके साथ तो तुम्हारी स्तुति जुड़ जाती है। इसलिए जैन कहता है कि महावीर, बस इनसे बड़ा कोई ज्ञानी कभी नहीं हुआ। ईसाई कहता है जीसस, वे ईश्वर के इकलौते बेटे। 'इकलौते' पर जोर देता है। क्योंकि अगर दूसरा भी बेटा हो तो झंझट खड़ी होगी। फिर कोई दूसरा धर्म दावा कर दे कि यह दूसरा बेटा है और जीसस के बड़े भाई हैं ये। तो इकलौते पर जोर देते हैं कि इकलौता बेटा! तो दूसरे का उपाय ही नहीं छोड़ते। मुसलमान कहते हैं : मुहम्मद आखिरी पैगंबर, उनके बाद अब कोई नहीं। ईश्वर ने आखिरी पैगाम भेज दिया, अब इसमें कोई तरमीम नहीं, कोई सुधार नहीं। भेज दी आखिरी बात, आखिरी किताब आ चुकी। अब कोई किताब नहीं आयेगी। क्योंकि अगर ऐसा आगे भी दरवाजा खुला रखें तो फिर हजारों लोग हैं, हर कोई दावा कर देगा कि हम दूसरी किताब ले आये। यह आ गयी किताब दूसरी। फिर इलहाम हो गया हमें। यह सब रोकना पड़ेगा। मुहम्मद को अप्रतिम बनाना होगा, आखिरी बनाना होगा। इनके ऊपर फिर किसी को जाने न देना होगा। फिर इससे तुमने जोड़ लिया कि हम मुसलमान और हमारा पैगंबर आखिरी पैगंबर। हिंदुओं से पूछो। वे कहते हैं कि वेद परमात्मा की किताब, और कोई किताब परमात्मा की नहीं। और वेद परमात्मा का पहला इलहाम। एक आर्यसमाजी मुझसे मिलने आये। वे कहने लगे कि आप बाइबिल की इतनी प्रशंसा करते हैं और जीसस की इतनी प्रशंसा करते हैं; लेकिन आप हमारी बात पर ध्यान दें। परमात्मा ने सबसे पहले तो वेद उतारा। तो वेद सबसे ज्यादा प्राचीन है। और परमात्मा कुछ गलती थोड़े ही करता है जो एक दफे भेज दिया, भेज दिया। फिर उसमें सुधार की कोई जरूरत ही नहीं है। फिर सारे धर्म तो बाद में . आये। तो ये सब आदमियों की ईजाद है। परमात्मा तो कोई भूल कर ही नहीं सकता। ऐसां थोड़े ही है कि एक भेजा, फिर दस-पचास साल बाद उसने सोचा कि अरे, इसमें कुछ भूल हो गई, फिर दूसरा भेजें, फिर तीसरा भेजें। तो वे कहने लगे कि हमारी किताब सबसे पहले आयी-वह सबूत है इस बात का कि फिर बाकी किताबें सब आदमियों की हैं। उनकी दलील...वेद से अपने को जोड़ लिया। सनातन धर्म, सबसे पुराना धर्म, सबसे प्राचीन। परमात्मा की पहली किताब। ईसाई कहते हैं कि समय के साथ रोज, जीवन के साथ रोज बदलाहट होती है। मुसलमान कहते हैं, समय के साथ बदलाहट होती है। तो पुरानी किताब तो सड़ चुकी। वह जिनके लिए भेजी थी, वे भी अब नहीं हैं। वह बात गयी। वह तो पहली क्लास की किताब थी। अब मनुष्यता पहुंच गयी है विश्वविद्यालय में। अब तुम वही क ख ग पढ़ते रहोगे? सबकी अपनी दलीलें हैं-अपनी को श्रेष्ठतम सिद्ध करने की दलीलें हैं। लेकिन पीछे बहुत गहरे में यह भाव छिपा है कि हम श्रेष्ठतम से जुड़े हैं, तो हम श्रेष्ठतम हो गये हैं। 166 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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