SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है, जल्दी पानी ले आओ, कुछ रोटी मांग लाओ। वह कहता है, नहीं जायेंगे। अपनी जिद पर अड़ा है। एक ने ज्यादा खाने की जिद की थी, एक ने न खाने की जिद कर ली–दोनों हठी हैं। दोनों में कोई भी सहज नहीं। दोनों असहज हैं। ___ लेकिन साधु तुम्हें सहज मालूम पड़ता है, क्योंकि तुम समझ नहीं पा रहे हो कि असहज का अर्थ क्या होता है। साधु तुम्हें संयमी मालूम पड़ता है। तुम्हें संयम का अर्थ नहीं मालूम। संयम का अर्थ होता है-संतुलित, मध्य में, अति पर जो नहीं गया। संतुलित आदमी तो तुम्हें साधु ही न मालूम पड़ेगा। जब तक अति पर न जाये तब तक तुम्हें दिखाई ही न पड़ेगा। तुम अति की ही भाषा समझते हो। अगर संयमी आदमी हो-जैसा मैं संयम का अर्थ कर रहा हूं, जैसा अष्टावक्र करते हैं-संतुलित आदमी हो तो तुम्हें पता ही न चलेगा कि इसकी विशेषता क्या है। अगर कोई आदमी उतना ही भोजन करता हो जितना उसके शरीर को जरूरत है, तो तुम्हें पता कैसे चलेगा? उपवास न करे तो पता ही नहीं चलेगा। कोई आदमी उतना ही सोये जितनी शरीर को जरूरत है, तो तुम्हें पता कैसे चलेगा-जब तक वह तीन बजे उठ कर और राम-भजन न करे! जब तक वह मुहल्ले की नींद खराब न कर दे, तब तक तुम्हें पता ही नहीं चलेगा कि कोई आदमी धार्मिक है। जब तक वह सिर के बल खड़ा न हो जाये, शीर्षासन न करे, तब तक तुम मानोगे नहीं कि योगी है। कुछ उल्टा करे। कुछ ऐसा करे जो विशिष्ट मालूम पड़े, असाधारण मालूम पड़े। - मैं तुमसे कहता हूं, अगर ठीक सहज आदमी हो, तुम्हारी पहचान में ही नहीं आयेगा। सहज आदमी इतना शांत होगा कि तुम्हारे पास से भी निकल जायेगा, तुम्हें पता भी न चलेगा कि कोई निकल ही असहज का चलता है। या तो आदमी बहुमूल्य हीरे-जवाहरातों से लदा हो. ज-सिंहासन पर बैठा हो. तो तम्हें पता चलता है। या सडक पर नग्न खडा हो जाये तो तम्हें पता चलता है। नग्न खडा हो जाये तो भी पता चलता है। क्योंकि यह भी विशिष्ट हो गया। सिंहासन पर हो तो भी पता चल जाता है, क्योंकि यह भी विशिष्ट है। सामान्य, सीधा-सादा आदमी, सहज-पता ही न चलेगा। क्योंकि जो चाहिए, वह वही कपड़े पहनेगा; जितना भोजन चाहिए, भोजन करेगा; जितनी नींद चाहिए, नींद लेगा। उसके जीवन में इतना संयम और संतुलन होगा कि वह तुम्हें चुभेगा नहीं, किसी भी कारण से चुभेगा नहीं। तुम्हें उसका बोध ही न होगा। तुम्हें उसका स्मरण ही न आयेगा। ____ और मैं तुमसे कहता हूं, जिस दिन तुम ऐसे हो जाओ कि किसी को तुम्हारा पता न चले; कब आये, कब गये, पता न चले; कैसे आये, कैसे गये, पता न चले-तभी जानना कि तुम सहज हुए। सहज यानी साधु। ___ अष्टावक्र कहते हैं : ‘ऐसा कृतकार्य हुआ पुरुष देखता हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ, सूंघता हुआ, खाता हुआ, सुखपूर्वक रहता है।' न तो उपवास के पीछे पड़ता है, न त्याग के पीछे पड़ता है, न शीर्षासन लगा कर खड़ा होता है, न शरीर पर कोड़े मारता है। ईसाई फकीर हुए हैं, जो रोज सुबह उठ कर कोड़े मारते थे। कौन फकीर कितने कोड़े मारता है, उतना ही बड़ा फकीर समझा जाता था। उनके घाव कभी मिटते ही न थे। क्योंकि रोज कोड़े मारेंगे सुबह, तो घाव भरेंगे कैसे? उनसे लहू बहता ही रहता था। और भक्त आ कर देखते कि किसने कितने शुन्य की वीणा : विराट के स्वर 149
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy