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________________ कठिन है तय करना। क्योंकि अब बच्चे पैदा न हों, इसकी फिक्र करनी पड़ रही है। लाख उपाय करोगे तो भी झंझट मिटने वाली नहीं है। अब अगर बच्चों को तुम रोक दोगे तो तुम्हें पता नहीं है कि इसका परिणाम क्या होगा। ___ मेरे देखे, अगर एक स्त्री को बच्चे पैदा न हों तो उस स्त्री में कुछ मर जायेगा। उसकी 'मां' कभी पैदा न हो पायेगी। वह कठोर और क्रूर हो जायेगी। उसमें हिंसा भर जायेगी। बच्चे जुड़े हैं। जैसे वृक्ष बादल से जुड़े हैं, ऐसे बच्चे मां से जुड़े हैं और भी गहराई से जुड़े हैं। फिर क्या परिणाम होंगे, मां को किस तरह की बीमारियां होंगी, कहना मुश्किल है। क्योंकि अब तक स्त्रियां अनेक बच्चे पैदा करती रही हैं, तो हमें पता नहीं है। अब हम कहते हैं : 'दो या तीन बस।' अब यह 'दो या तीन बस' कहने पर स्त्री पर क्या परिणाम होंगे, इसका हमें कुछ पता नहीं। अभी हम कहते हैं कि संतति-नियमन की टिकिया ले लो। यह टिकिया स्त्री के शरीर में क्या परिणाम लायेगी, इसका भी हमें कुछ पता नहीं है। कितनी स्त्रियां पागल होंगी, कितनी स्त्रियां कैंसर से ग्रस्त होंगी, क्या होगा-कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अभी हमें पता नहीं है। __इंग्लैंड में एक दवा ईजाद हुई, जिससे कि स्त्रियों को बच्चे बिना दर्द के पैदा हो सकते हैं। उसका खूब प्रयोग हुआ। लेकिन जितने बच्चे उस दवा को लेने से पैदा हुए-सब अपंग, कुरूप, टेढ़े-मेढ़े...। मुकदमा चला अदालत में। लेकिन तब तक तो भूल हो गयी थी; अनेक स्त्रियां ले चुकी थीं। बिना दर्द के बच्चे पैदा हो गये, लेकिन बिना दर्द के बच्चे बिलकुल बेकार पैदा हो गये, किसी काम के पैदा न हुए। तब कुछ खयाल में आया कि शायद स्त्री को जो प्रसव-पीड़ा होती है, वह भी बच्चे के जीवन के लिए जरूरी है। अगर एकदम आसानी से बच्चा पैदा हो जाये तो कुछ गड़बड़ हो जाती है। शायद वह संघर्षण, वह स्त्री के शरीर से बाहर आने की चेष्टा और पीड़ा, स्त्री को और बच्चे को-शुभ प्रारंभ है। __ पीड़ा भी शुभ प्रारंभ हो सकती है। अगर फूल ही फूल रह जायें जगत में और कांटे बिलकुल न बचें, तो लोग बिलकल दुर्बल हो जायेंगे; उनकी रीढ़ टट जायेगी: बिना रीढ के हो जायेंगे। जीवन ऐसा जुड़ा है कि कहना मुश्किल है कि किस बात का क्या परिणाम होगा। कौन-सी बात कहां ले जायेगी! मकड़ी का जाला, एक तरफ से हिलाओ, सारा जाला हिलने लगता है। . नहीं, आदमी बुद्धि से कहीं पहुंचा नहीं। बुद्धि के नाम से जिसको हम प्रगति कहते हैं, वह हुई नहीं। वहम है। भ्रांति है। आदमी पहले से ज्यादा सुखी नहीं हुआ है, ज्यादा दुखी हो गया है। आज भी जंगल में बसा आदिवासी तुमसे ज्यादा सुखी है। हालांकि तुम उसे देख कर कहोगे: 'बेचारा! झोपड़े में रहता है या वृक्ष के नीचे रहता है। यह कोई रहने का ढंग है? भोजन भी दोनों जून ठीक से नहीं मिल पाता, यह भी कोई बात है? कपड़े-लत्ते भी नहीं हैं, नंगा बैठा है! दरिद्र, दीन, दया के योग्य। सेवा करो, इसको शिक्षित करो। मकान बनवाओ। कपड़े दो। इसकी नग्नता हटाओ। इसकी भूख मिटाओ।' तुम्हारी नग्नता और भूख मिट गयी, तुम्हारे पास कपड़े हैं, तुम्हारे पास मकान हैं लेकिन सुख बढ़ा? आनंद बढ़ा? तुम ज्यादा शांत हुए? तुम ज्यादा प्रफुल्लित हुए? तुम्हारे जीवन में नृत्य आया? तुम गा सकते हो, नाच सकते हो? या कि कुम्हला गये और सड़ गये? तो कौन-सी चीज गति दे रही है और कौन-सी चीज सिर्फ गति का धोखा दे रही है, कहना मुश्किल है। शून्य की वीणा : विराट के स्वर
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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