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छंदों में जो लय लहराती वह पदचाप तुम्हारी पायल की रुन-झुन पर मेरा राग मुखर बलिहारी शब्दों में जो भाव मचलते उन पर क्या वश मेरा अपने को ही बहलाना है तो गा लूं!
क्या मेरा है जो आज तुम्हें दे डालूं! सब तरह से वे मेरे करीब आये हैं। और इसी तरह कोई करीब आता है-सब ऋतुओं से गुजर कर करीब आता है। ___गुरु और शिष्य का संबंध एक रंग का नहीं है, सतरंगा है। एक रंग का हो तो बेस्वाद हो जाये। जिसके साथ श्रद्धा जोडी है उस पर कई बार अश्रद्धा भी आती है-स्वाभाविक है। जिसके साथ लगाव बांधा है उस पर कभी नाराजगी भी होती है-स्वाभाविक है। जिसको सब दे डालना चाहा है, कभी ऐसा लगता है धोखा तो नहीं हो गया, भूल तो नहीं हो गयी, चूक तो नहीं हो गयी। कभी चिंता भी उठती है, संदेह भी उठता है। यह बिलकुल स्वाभाविक है। ऐसे ही धूप-छांव में मन पकता है।
हिम्मत भाई पके और उनका फल गिर गया। अब धूप-छांव का खेल नहीं रहा है। अब वे परम विश्रांति में मेरे पास बैठ गये हैं। इसी भाव को प्रगट करने के लिए उनके मन में यह बात उठी होगी कि लिख कर भेज दें: हम्मा के प्रणाम! मुझे पता है। लिख कर न भी भेजो तो भी पता है। बहुत हैं जो कभी लिख कर कुछ नहीं भेजते, उनका भी पता है। यह घटना कुछ ऐसी है, जब घट जाती है तो पता चल ही जाप्ता है। यह घटना इतनी बड़ी है। जब तुम वस्तुतः झुक जाते हो तो तुम्हारी तरंग-तरंग कहने लगती है, तुम्हारा उठना-बैठना, तुम्हारी आंख का पलक का झपना, तुम्हारे हृदय की धड़कन-धड़कन कहने लगती है कि घटना घट गयी, मिलन हो गया है!
हरि ॐ तत्सत्!
रसो वैसः
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