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________________ अहिंसा का उपदेश दिया है, यह जरा सोचने जैसी बात है, क्षत्रिय घरों में पैदा हुए, तलवारों के साये में जीवन बना, वही शिक्षण था उनका। मार-काट उनकी व्यवस्था थी। खून ही उनका खेल था। और फिर सब एकदम अहिंसक हो गये! कभी तुमने सुना कि कोई ब्राह्मण अहिंसक हुआ हो? अभी तक तो नहीं सुना। ब्राह्मण में जो बड़ा से बड़ा ब्राह्मण हुआ है, परशुराम, वह बड़े से बड़ा हिंसक था। उसने सारी दुनिया से, कहते हैं, क्षत्रियों को अट्ठारह दफा नष्ट कर दिया। गजब का आदमी रहा होगा! ब्राह्मण के घर में पैदा हुआ। क्षत्रियों में से तो अहिंसा का सूत्र आया। और परशुराम फरसा लिये आये। कुछ सोचने जैसा है। ___ कुछ सोचने जैसा है। जहां क्रोध है, हिंसा है, वहीं से अहिंसा पैदा होती है। अहिंसा कायर की नहीं है। कायर की हो भी नहीं सकती। अहिंसा तो उसकी है जिसके पास प्रज्ज्वलित अग्नि है। __परमात्मा क्रोध देता है, क्योंकि यह तुम्हारी ऊर्जा है-कच्ची ऊर्जा है। इसी ऊर्जा को निखारतेनिखारते, इसी उर्जा को स्वीकार करके, इस ऊर्जा को समझकर, बूझकर, जागकर तुम एक दिन पाओगे कि यही ऊर्जा क्षमा बन गयी। क्रोध करुणा बन जाता है-स्वीकार की कीमिया चाहिए। और कामवासना ब्रह्मचर्य बन जाती । है-स्वीकार की कीमिया चाहिए। कामवासना से लड़ कर कोई कभी ब्रह्मचर्य को उपलब्ध नहीं होता। कामवासना को समझ कर. कामवासना को परिपर्ण भाव से बोधपर्वक जी कर कोई ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होता है। . बस एक ही चीज तुम्हारी साथी है और वह है स्वीकार-भाव में जो सूझ पैदा होती है, जो समझ पैदा होती है। लड़ने वाले के पास समझ होती नहीं। क्रोध से लड़ोगे, उसी लड़ने में समझ गंवा दोगे। काम से लड़ोगे, उसी लड़ने में समझ खो दोगे। लड़ने में कहां समझ ? समझ के लिए तो बड़ा स्वीकार-भाव चाहिए। स्वीकार की शांति में समझ का दीया जलने लगता है। सूझ का साथी मौम दीप मेरा! कितना बेबस है यह, जीवन का रस है यह क्षण-क्षण पल-पल बल-बल छू रहा सवेरा अपना अस्तित्व भूल सूरज को टेरा मौम दीप मेरा! कितना बेबस दीखा, इसने मिटना सीखा रक्त-रक्त बिंदु-बिंदु झर रहा प्रकाश सिंधु कोटि-कोटि बना व्याप्त छोटा-सा घेरा मौम दीप मेस! जी से लग जेब बैठ, तंबल पर जमा पैठ जब चाहूं जाग उठे, जब चाहूं सो जावे पीड़ा में साथ रहे, लीला में खो जावे मौम दीप मेरा! सूझ का साथी मौम दीप मेरा! रसो वेसः 129
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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