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________________ दिशाएं बंद हैं आकाश उड़ता-फड़फड़ाता है वहीं फिर लौट आता है तुम्हारी पूरी जिंदगी एक वर्तुल में घूमता हुआ चाक है। इसलिए हिंदुओं ने जीवन को जीवन-चक्र कहा। देखते हैं, भारत के ध्वज पर जो चक्र बना है, वह बौद्धों का चक्र है। बौद्धों ने जीवन को एक गाड़ी का चक्का माना; घूमता रहता है उसी कील पर, वहीं का वहीं । एक आरा ऊपर आता, फिर नीचे चला जाता; फिर थोड़ी देर बाद वही आरा ऊपर आ जाता है। तुम जरा चौबीस घंटे अपने जीवन का विश्लेषण करो। तुम पाओगे : क्रोध आता, पश्चात्ताप आता, फिर क्रोध आ जाता। प्रेम होता, घृणा होती, फिर प्रेम हो जाता। मित्रता बनती, शत्रुता आती, फिर मित्रता । ऐसे ही चलते रहते, आरे घूमते रहते, जीवन का चाक घूमता रहता है । चाक का अर्थ है : जीवन में पुनरुक्ति हो रही है। * कब जागोगे इस पुनरुक्ति से ? कुछ तो करो! एक काम करो : अब तक बदलना चाहा, अब स्वीकार करो ! स्वीकार होते ही एक नया आयाम खुलता है। यह तुमने कभी किया ही नहीं था । यह · बिलकुल नयी घटना तुम करोगे। और मैं नहीं कह रहा हूं कि लाचारी...। मैं कह रहा हूं, धन्यभाव से ! प्रभु ने जो दिया है उसका प्रयोजन होगा। क्रोध भी दिया है तो प्रयोजन होगा। तुम्हारे महात्मा तो समझाते रहे कि क्रोध न हो, लेकिन परमात्मा नहीं समझता है । फिर बच्चा आता है, फिर क्रोध के साथ आता है। अब कितनी सदियों से महात्मा समझाते रहे ! न तुम समझे न परमात्मा समझा। कोई समझते ही नहीं महात्माओं की। महात्मा मर कर सब स्वर्ग पहुंच गये होंगे। वहां भी परमात्मा की खोपड़ी खाते होंगे कि अब तो बंद कर दो-क्रोध रखो ही मत आदमी में । लेकिन तुम जरा सोचो, एक बच्चा अगर पैदा हो बिना क्रोध के, जी सकेगा? उसमें बल ही न होगा । उसमें रीढ़ न होगी। वह बिना रीढ़ का होगा। तुम एक धप्प लगा दोगे उसको, वह वैसे ही का वैसा मिट्टी का लोंदा जैसा पड़ा रहेगा। जी सकेगा ? उठ सकेगा ? चल सकेगा ? गोबर के गणेश जी होंगे। किसी काम के न सिद्ध होंगे। तुमने कभी खयाल किया, जिस बच्चे में जितनी क्रोध की क्षमता होती है उतना ही प्राणवान है, उतना ही बलशाली होता है। और दुनिया में जो महानतम घटनाएं घटी हैं व्यक्तित्व की, वे सभी बड़ी ऊर्जा वाले लोग थे। तुमने महावीर की क्षमा देखी? महावीर के क्रोध की हमें कोई कथा नहीं बतायी गयी। लेकिन मैं तुमसे यह कहता हूं कि अगर इतनी महाक्षमा पैदा हुई तो पैदा होगी कहां से? महाक्रोध रहा होगा। जैन डरते हैं, उसकी कोई बात करते नहीं। लेकिन यह मैं मान नहीं सकता कि महाक्षमा महाक्रोध के बिना हो कैसे सकती है। अगर इतना बड़ा ब्रह्मचर्य पैदा हुआ है तो महान कामवासना रही होगी, नहीं तो होगा कहां से? नपुंसक को कभी तुमने ब्रह्मचारी होते देखा ? और नपुंसक के ब्रह्मचर्य का क्या अर्थ होगा ? सार भी क्या होगा ? तुम यह जरा देखो! जैनों के चौबीस तीर्थंकर ही क्षत्रिय हैं और बुद्ध भी क्षत्रिय हैं! और सभी ने 128 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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