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________________ चाहिए! जैसा जगत है वैसा नहीं; कुछ और अन्यथा होना चाहिए! मेरे सपनों के अनुकूल नहीं है। मेरा मन प्रफुल्लित नहीं। रत्ती भर भी अतृप्ति है तो कामना उठ गयी। उसी कामना के फैलाव में समय भी उठ गया। ज्यादा अच्छा होगा कि हम कहें कि समय और काम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब काम में, तुम्हारी कामना में कोई बाधा डालता है तो क्रोध पैदा होता है। तो क्रोध बहुत मौलिक नहीं है। काम बहुत मौलिक है। क्रोध तो उप-उत्पत्ति, बाइप्रोडक्ट है। तुम जो पाना चाहते थे, किसी ने बाधा डाल दी। तुम भागे चले जा रहे थे धन कमाने, कोई दुश्मन बीच में अड़कर खड़ा हो गया; किसी ने दीवाल बना दी या कोई तुमसे पहले झपट कर ले लिया, जो तुम लेने चले थे—क्रोध पैदा हुआ। ___खयाल करना, क्रोध कब पैदा होता है ? जब तुम्हारी काम की दौड़ में कहीं कोई अड़चन आ जाती है, कोई अड़चन डाल देता है। तो कभी-कभी तुम्हें ऐसी चीजों पर क्रोध आ जाता है कि तुम हंसोगे, खुद ही हंसोगे। तुम पत्र लिखने बैठे थे और फाउंटेन पेन ठीक नहीं चल रहा था, क्रोध में पटक दिया। फाउंटेन पेन को क्रोध में पटक रहे हो, पीछे खुद ही पछताओगे कि यह पारकर कलम खराब हो गयी, नुकसान लग गया। इसको पटकने से क्या अर्थ था? लेकिन बात तो प्रतीकात्मक है। तुम पत्र लिखने बैठे थे, अपनी प्रेयसी को पत्र लिख रहे थे, बड़ी कामना का जाल था, बड़े शब्द उतर रहे थे, कविताएं तैर रही थीं मन में और यह कलम बीच में बाधा डालने लगी? यह कलम दुश्मन बनने लगी? ___ मैं एक सज्जन को जानता हूं जो क्रिकेट के दीवाने हैं। क्रिकेट का कहीं मैच चलता था, वे रेडियो पर बैठे सुन रहे थे। उनकी पार्टी हार गयी, रेडियो उठा कर पटक दिया! अब तुम्हारी पार्टी के हारने से और रेडियो के पटकने से कोई भी तो लेना-देना नहीं है। रेडियो का कोई कसूर भी नहीं है, मगर गुस्सा आ गया। कुछ और सूझा नहीं, वहां कुछ और था भी नहीं। जो तुम चाहते हो वैसा न हो तो तुम अंधे हो जाते हो। फिर तुम यह देखते ही नहीं कि तुम क्या कर रहे हो। लोग वस्तुओं को गालियां देते हैं। कार स्टार्ट नहीं हो रही है, उसको गाली देते हैं। सोचते भी नहीं क्या कर रहे हैं। जैसे कि कार जान-बूझकर...तुम तो जा रहे हो दूकान और कार बीच में खड़ी हो गयी, चलती नहीं, गुस्सा आता है। तुम अपने गुस्से को गौर से देखना। गुस्सा मौलिक नहीं है। कामवासना जहां भी अड़चन पाती है वहां क्रोध आ जाता है। कामवासना जो पा लेती है, उस पर मोह आ जाता है-कहीं छूट न जाये! इसलिए मोह भी मौलिक नहीं है। तुमने धन पा लिया, फिर तुम उसको तिजोरी में बंद करके बैठ जाते हो। कहते हैं, लोग मर जाते हैं तो भी फिर धन पर सांप बन कर कुंडली मार कर बैठ जाते हैं। मर कर बैठते हों न बैठते हों, जिंदा में बैठे हुए हैं। कुंडली मार कर! कोई ले न जाये! मर जायेंगे मगर खर्च न करेंगे। . मुल्ला नसरुद्दीन का बेटा नदी में डूब रहा था—बाढ़ आयी नदी में। एक पुलिस वाले ने अपनी जान को जोखिम में डाल कर उसे बचाया। उसे लेकर घर गया। बेटा दौड़ता हुआ भीतर गया, पुलिस वाला खड़ा रहा कि शायद मां-बाप में से कोई आकर...कम से कम धन्यवाद तो देगा। नसरुद्दीन भीतर से आया और उस लड़के ने इशारा किया पुलिस वाले की तरफ। नसरुद्दीन ने कहा: क्या आपने ही मेरे बेटे को नदी में बचाया? पुलिस वाला प्रसन्न हुआ कि अब धन्यवाद देगा या कुछ भेंट देगा या 118 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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