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आ कर बीट कर दी। वह खड़ा हो गया नाराजगी में। उसने कहा ः 'हद हो गई! घर-द्वार छोड़ कर आये, यह कौआ आ गया।'
दूसरा तो कहीं भी मौजूद हो जायेगा। जब तक कि दूसरे का भाव ही न मिट जाये, जब तक कि दूसरे में दूसरा दिखाई पड़ना ही बंद न हो जाये तब तक नरक जारी रहेगा।
तुमने कभी खयाल किया, तुम अकेले बैठे हो अपने कमरे में निश्चित भाव से, विश्राम की एक दशा में-अचानक किसी ने द्वार पर दस्तक दी, दस्तक होते ही तनाव पैदा हो जाता है। वह विश्राम गया। कोई मेहमान आ गये। अब तुम कहते जरूर हो कि देखकर आपको बड़े दर्शन हुए, बड़ा आनंद हुआ, गदगद हो गये! मगर तुम्हारे चेहरे से गदगदपन बिलकुल पता नहीं चलता, न तुम्हारी आंखों में कुछ स्वागत दिखाई पड़ता है। कहते हो लोकाचार के लिए। बिठा भी लेते हो।
मुल्ला नसरुद्दीन के घर ऐसे ही एक दिन एक मेहमान आ गये। बकवासी हैं। वे घंटों बकवास करते हैं। मुल्ला ऊबने लगा। कई तरह से बहाने किए, कई दफा घड़ी देखी; मगर वे कुछ...! कई दफा जम्हाई ली। मगर जो दूसरों को उबाने में कुशल हो जाते हैं वे इन बातों की चिता ही नहीं करते। वे तो प्राणपण से अपने कार्य में लगे रहते हैं। वह तो लगा ही रहा, लगा ही रहा। आखिर मुल्ला ने कहा कि अब रात हुई जा रही है, आपको घर पहुंचने में देर होगी। तो बड़ी मजबूरी में वह उठा। उसने कहा कि हां, बात तो ठीक है, पत्नी भी राह देखती होगी, अब मैं चलूं। मुल्ला बड़े प्रसन्न हुए। वह उठा, दो कदम लिए, टेबल के पास पहुंच कर एक किताब उठाकर देखने लगा। मुल्ला ने कहा, फिर एक झंझट! किताब उलट-पुलट कर उसने वहां रखी किताब, फिर पैंतरा बदला और वापिस लौट आया और उसने कहा कि याद आता है कुछ कहना चाहता था! मुल्ला ने कहा: 'शायद नमस्ते तो नहीं कहना चाहते?' __ लोग हैं, जिन्हें इसकी जरा भी चिंता नहीं, जिन्हें इसका बोध ही नहीं कि कोई अकेला हो तो उसका । अकेलापन मत छेड़ो, मत खराब करो। पूरब में तो यह धारणा ही नहीं है। पश्चिम में थोड़ा बोध पैदा हुआ है कि कोई अकेला हो तो उसका अकेलापन मत छेड़ो। यह अत्याचार है, अतिक्रमण है। यहां तो कोई इस बात का खयाल ही नहीं है।
क्यों किसी के अकेलेपन को खंडित करना अनाचार है, अनीति है? इसलिए कि अकेलेपन में ही थोड़ा विश्राम है। जैसे ही दूसरा आया कि विश्राम गया। जैसे ही दूसरा मौजूद हुआ कि दूसरे की मौजदगी तनाव की तरंगें पैदा करने लगती है। तम स्वस्थ नहीं रह जाते। तम सरल नहीं रह जाते। कभी-कभी तुम्हारे बाथरूम में तुम थोड़े सरल होते हो-अकेले! लेकिन अगर तुम्हें पता चल जाये कि कोई कुंजी के छेद से झांक रहा है तो तत्क्षण सब सरलता खो जाती है। हो सकता है क्षण भर पहले तुम आईने में मुंह बिचका रहे थे और मजा ले रहे थे या कोई बचपन की धुन गुनगुना रहे थे; मगर पता चल जाये कि कोई, तुम्हारा बेटा ही, छोटा बेटा ही झांक रहा है कुंजी के छेद से, तो भी तुम रुक गये, तुम सरल न रहे, स्वाभाविक न रहे। ___ हमारे जीवन का अधिकतम तनाव यही है कि दूसरे की आंख हमें बेचैन कर देती है और दूसरे की आंख हमें मुखौटा ओढ़ने के लिए मजबूर कर देती है। तो जो हम नहीं हैं वह दिखलाना पड़ता है। जैसे हम नहीं हैं वैसा बतलाना पड़ता है। मुस्कुराहट नहीं आ रही है तो खींच-खींच कर लानी पड़ती
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4