________________
बड़ा फीका है; सपने हमारे बड़े रंगीन हैं, बड़े रुपहले! इंद्रधनुषी हैं सपने; और जिंदगी बस काली-सफेद, इसमें कुछ बहुत रंग नहीं है !
आंख बंद कर लेने से कोई रूप मिटेगा ? आंख फोड़ लेने से कुछ रूप की कल्पना खो जायेगी ? काश, इतना सस्ता होता तो आंख फोड़ लेते, कान फोड़ लेते, हाथ काट देते! और ऐसा लोगों ने किया है। रूस में ईसाइयों का एक संप्रदाय था जो जननेंद्रियां काट लेता था। अब यह भी कोई बात हुई ! स्त्रियां स्तन काट लेती थीं। यह भी कोई बात हुई ! जननेंद्रियां काट लेने से कामवासना चली जायेगी ? काम की क्षमता चली जायेगी, लेकिन क्षमता जाने से कहीं वासना गई है ? तो तुम बूढ़ों से पूछ लो, जिनकी क्षमता चली गई है - वासना चली गई है? सच तो यह है कि बुढ़ापे में वासना जैसा सताती है वैसा जवानी में भी नहीं सताती। क्योंकि जवानी में तो तुम कुछ कर सकते हो वासना के लिए; बुढ़ापे में कुछ कर भी नहीं सकते, सिर्फ तड़फते हो । बूढ़े मन में जिस बुरी तरह वासना पीड़ा बन कर आ जाती है, कांटे की तरह चुभती है, वैसे जवान मन में नहीं चुभती । शरीर तो बूढ़ा हो जाता है, वासना थोड़े ही बूढ़ी होती है कभी! वासना तो जवान ही रहती है। उसका स्वभाव जवानी है। शरीर थक जाता है; वासना थोड़े ही रुकती है, वह तो दौड़ती ही रहती है। तुम जब थक कर भी गिर जाते हो राह पर, तब भी तुम्हारी वासना अनंत अनंत यात्राओं पर निकलती रहती है। अगर ऐसा न होता तो दुबारा जन्म ही क्यों होता ! अगर बूढ़े की वासना भी बूढ़ी हो गई, शरीर भी क्षीण हो गया, वासना भी क्षीण हो गई, तो मुक्त हो जायेगा, दुबारा जन्म नहीं होगा ।
दुबारा जन्म क्यों होता है ? वह जो वासना जवान है, वह नये शरीर की मांग करती है। वह कहती है : ‘खोजो नई देह! यह देह तो गई, खराब हुई। अब कुछ नया माडल खोजो । यह पुराना माडल अ काम का न रहा। लेकिन अभी मैं नहीं मरी हूं। नई देह पकड़ो! नई देह के सहारे चलो। लेकिन चलो ! फिर से खोजो! इस जीवन में तो नहीं पा पाये, अगले जीवन में शायद मिलन हो जाये, शायद तृप्ति मिले, सुख मिले। फिर खोजो ।'
इधर बूढ़ा मरा नहीं कि उधर जन्मा नहीं। मरने और जन्मने में जरा-सी देर नहीं लगती। अक्सर तो ऐसा होता है कि तुम जब बूढ़े आदमी की लाश ले कर मरघट जा रहे हो तब तक वह किसी गर्भ में प्रवेश कर चुका; तुम जिसकी अब अर्थी सजा रहे हो, वह पैदा हो चुका। इतनी फुरसत कहां है! वासना इतनी प्रगाढ़ है कि तुम्हारी राह थोड़े ही देखेंगे कि अब तुम अर्थी सजाओ, फूल-पत्ती बांटो, मोहल्ले-पड़ोस के लोगों को इकट्ठा करो, बैंड-बाजा बजाओ, मरघट ले जाओ - तुम्हें तो कुछ वक्त तो लगेगा ! रोने-धोने में, उपद्रव करने में, तुम्हें कुछ तो समय लगेगा ! पहुंचते-पहुंचते... लेकिन बूढ़े को इतनी फुरसत कहां है कि तुम्हारी राह देखे ! तुम सड़ी सड़ाई लाश को ही जला रहे हो। वहां अब कोई नहीं है। वह तो किसी नये गर्भ में प्रविष्ट हो चुका। वासना क्षण भर की देर नहीं मांगती । तुमने देखा, जब वासना तुम्हें पकड़ती है, तुम क्षण भर रुक सकते हो ? जब क्रोध तुम्हें है, तब तुम यह कहते हो कि चलो कल कर लेंगे ? जब क्रोध तुम्हें पकड़ता है, तुम उसी क्षण आगबबूला हो जाते हो। और जब वासना तुम्हें पकड़ती है तो तुम सोचते हो कि चलो, कल, परसों, अगले जन्म में, जल्दी क्या है? जब वासना तुम्हें पकड़ती है तो तुम उतावले हो जाते हो। उसी क्षण होना चाहिए! क्षण में होना चाहिए ! एक क्षण की भी देरी सालती है, खटकती है। इधर बूढ़ा मरा, उधर
92
अष्टावक्र: महागीता भाग-4