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ही, इसी क्षण! इसे थोड़ा जाग कर अनुभव करो।
इसी क्षण! अगर तुम शांत हो, मुझे सुनते समय, अगर तुम अपने में स्थित बैठे हो, कोई भाग-दौड नहीं, कोई हलन चलन नही तो क्या पाने को है? क्या इसी क्षण तम्हें स्वाद नहीं मिलता इस बात का कि पाने को क्या है? पा लिया, पाए ही हुए हैं।
जब बुद्ध को शान हुआ किसी ने पूछा कि क्या मिला? तो बुद्ध ने कहा, मिला कुछ भी नहीं जो पाया ही हुआ था, उसका पता चला। अपने ही घर में संपदा थी; न मालूम कहा-कहा खोजते-फिरते थे!
यह दियों की बड़ी मीठी कथा है कि एक यहूदी धर्मगुरु ने सपना देखा कि राजधानी में पुल के बाएं किनारे, राजमहल के सामने बड़ा धन गड़ा है। एक दिन देखा, तो उसने सोचा सपने तो सपने हैं, लेकिन दूसरे दिन फिर देखा। और इतना स्पष्ट देखा, बराबर जगह भी दिखाई पड़ी कि एक पुलिस वाला वहां खड़े हो कर पहरा देता है पुल के ऊपर। ठीक उसके नीचे, जहां पुलिस वाला खड़ा है। मगर दूसरे दिन थोड़ा मन में गुदगुदी तो आई कि धन उखाड़ ले जा कर, लेकिन सोचा कि सपनों से कहीं ऐसे धन मिले! फिर लेकिन तीसरे दिन सपना आया और आवाज आई, कि क्या पड़ा-पड़ा कर रहा है! जा खोज ले, अब यह मौका फिर न मिलेगा! पीढ़ी-दर-पीढ़ी के लिए तेरी रोग-दीनता सब दूर हो जाएगी।
तो बेचारा यह दी गया पहुंचा चल कर कई दिनों के बाद राजधानी भरोसा तो नहीं आता था, कई दफे संदेह होने लगता था मन में कि सपने के पीछे जा रहा हूं मूरख हूं कहां का पुल, कहां का राजमहल-हो या न हो! पर अब आधा आ गया, तो चलो देख ही आएं। और राजधानी भी नहीं देखी, तो राजधानी भी देख लेंगे। जा कर तो चकित हो गया, पुल है वही पुल! महल है सामने- वही महल जो सपने में देखा, रत्ती-रत्ती वही है और पुलिस वाला खड़ा है और शक्ल भी पहचानी।।
वह तीन दिन जो सपने में देखा, वही आदमी खड़ा है। बड़ा हैरान, लेकिन अब खोदे कैसे! वहा पहरा लगा रहता है चौबीस घंटा।
मगर वह घूमने लगा वहीं वहीं। पुल के आसपास चक्कर लगाए, इधर जाए, उधर जाए।
पुलिस वाला भी देख कर सोचने लगा कि मामला क्या है! वह उसके लिए खड़ा किया गया है पुलिस वाला कि कोई पुल पर से कूद-काद कर मर न जाए। आत्महत्या करने वालों के लिए जगह थी वह। कुछ आत्महत्या तो नहीं करनी है? बात क्या है? लेकिन आदमी सीधा-सादा, भोला-भाला मालूम पड़ता है।
दो -चार दिन तो उसने देखा, फिर नहीं रहा गया। उसने कहा कि सुन भाई, तू क्यों यहां भटकता है? किसी की प्रतीक्षा है? कुछ खोज रहा, कुछ गंवा बैठा, कोई दुख, कोई पीड़ा-क्या मामला है? तो उसने कहा, अब आप से क्या छिपाना। एक बड़ी हैरानी की बात है:'सपना देखा, तीन दिन तक देखा। यही जगह, जहां आप खड़े हैं, इसके नीचे धन गड़ा है।' वह पुलिस वाला तो जोर से हंसने लगा। उसने कहा, हद हो गई, सपना तो मैंने भी देखा है कि फलां -फलां गांव में और वह उसी के गांव का नाम