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धूप की हलकी छुअन भी तोड़ देने को बहुत है लहरियों का हिमाच्छादित मौन सोन की बालू नहीं यह शुद्ध जल है तलहटी पर रोकने वाला इसे है कौन? हवा मरती नहीं है लाख चाहे तुम उसे तोड़ो-मरोड़ो खुशबुओं के साथ वह बहती रहेगी। आंधियों का आचरण या घना कोहरा जलजला का काटता कब हरेपन का शीश खेत बेहड़ या कि आंगन जहां होगी उगी तुलसी सिर्फ देगी मुक्ति का आशीष शिखा मिटती नहीं है लाख अंधे पंख से उसको बुझाओ अंचलों की ओट वह जलती रहेगी। नदी रुकती नहीं है लाख चाहे उसे बांधो ओढ़ कर शैवाल
वह चलती रहेगी। जीवन की धारा बही जाती है-तुम्हें न रोकना है, न सहारा देना है। तुमने इसे रोकने की कोशिश की तो तुम उलझे। तुमने इसे सहारा देने की कोशिश की, तो तुम उलझे। तुम तट पर बैठ जाओ, तटस्थ हो जाओ।
संस्कृत में दो शब्द हैं-तटस्थ और कूटस्था दोनों शब्द बड़े अदभुत हैं! तटस्थ प्रक्रिया है कूटस्थ होने की। पहले किनारे बैठ जाओ, तट पर बैठ जाओ। बहने दो नदी की धार; तुम इसमें राग-रंग