SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरे से पूछ-पूछ कर हमने झूठा आत्म परिचय बना लिया है। ज्ञानी ठीक कहते हैं कि भीतर परमात्मा है और प्रकाश है; लेकिन इस अंधेरी घाटी से गुजरना होगा। अंधेरी घाटी से गुजरना कीमत चुकाना है। नहीं तो जीवन विकल रहेगा। मैं तो बहुत दिनों पर चेता। जम कर ऊबा श्रम कर डूबा सागर को खेना था मुझको रहा शिखर को खेता मैं तो बहुत दिनों पर चेता। थी मति मारी था भ्रम भारी ऊपर अंबर गर्दीला था नीचे भंवर लपेटा मैं तो बहुत दिनों पर चेता| यह किसका स्वर भीतर बाहर कौन निराशा, कुंठित घड़ियों में मेरी सुधि लेता मैं तो बहुत दिनों पर चेता। मत पछता रे खेता जा रे अंतिम क्षण में चेत जाए जो वह भी शतवर चेता मैं तो बहुत दिनों पर चेता। मगर लोग हैं जो अंत तक नहीं चेतते। अंतिम क्षण में भी चेतना आ जाए, होश आ जाए, अपने जीवन को परखने की क्षमता और साहस आ जाए तो भी चेत गए। अंतिम क्षण में चेत जाए जो वह भी शतवर चेता। वह भी प्रबुद्ध हो गया। लेकिन कठिन है, जब जीवन भर हम धोखा देते हैं तो अंतिम क्षण में चेतना कठिन है। क्योंकि चेतना कुछ आकाश से नहीं उतरती-हमारे जीवन भर का निचोड़ है। बहुत लोग यह आशा भी रखते हैं कि अभी तो जवान हैं आएगा बुढ़ापा कर लेंगे ध्यान, कर
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy